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जैन साहित्य में कोश-परम्परा
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गण, गच्छ, वंश, गुरु-परम्परा, स्थान, समय आदि का संकेत मिलता है। इसमें ११३ पृष्ठों में पं० परमानन्द जी लिखित प्रस्तावना भी विशेष महत्त्वपूर्ण है।
जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह के दूसरे कोश के सम्पादक पं० परमानन्द शास्त्री हैं। शास्त्रीजी इतिहास एवं साहित्य के गणमान्य विद्वान् हैं। आपके द्वारा सौ से भी उपर शोध प्रबन्धों को स्वयं लिखकर प्रकाशित कराया गया ।
इस द्वितीय भाग में अप्रभ्रंश ग्रन्थों की १२२ प्रशस्तियाँ प्रल्लिखित हैं। इससे तत्कालीन धार्मिक एवं सामाजिक रीति-रिवाज पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इन प्रशस्तियों को पांडुलिपियों में से उद्धृत किया गया है और यथासम्भव अप्रकाशित ग्रन्थों को ही सम्मिलित किया गया है। लगभग १५० पृष्ठों की भूमिका भी विशेष महत्त्व रखती है । इसका प्रकाशन १९६३ में दिल्ली से हुआ।
सम्पादक-श्री मोहनलाल बांठिया एवं श्रीचन्द चोरडिया : लेश्या कोश-इस ग्रन्थ का प्रकाशन संपादन श्री चोरडिया जी ने किया है । यह ग्रन्थ १९६६ में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। ये दोनों जैन वाङ्मय के प्रकांड विद्वान् थे। इन्होंने जैन वाङ्मय को सर्वविदित दशमलव प्रणाली के आधार पर १०० वर्गों में विभक्त किया है। इसके सम्पादन में मुख्य रूप से तीन बातों का ध्यान रखा गया है। पाठों का मिलान, विषय के उपविषयों का बर्गीकरण और हिन्दी अनुवाद, इसमें टीकाकारों का भी आधार लिया गया है। इसमें नियुक्ति, चूणि, वृत्ति, भाष्य आदि का भी यथास्थान उपयोग किया गया है। इस कोश में दिगम्बर ग्रन्थों का उल्लेख नहीं है। इस ग्रन्थ के निर्माण में ४३ ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है।
__सम्पादक-मोहनलाल बांठिया एवं श्रीचन्द चोरडिया : क्रिया कोश-इस कोश को सन् १९६६ में 'जैन दर्शन समिति' कलकत्ता ने प्रकाशित किया है। जैन दर्शन में गहरी पैठ रखने के कारण ही बांठिया जी के अथक परिश्रम से यह कोश बन सका । इसका निर्माण भी दशमलव प्रणाली के आधार पर किया गया है। क्रिया के माथ-साथ कर्म को भी इसमें आधार बनाया गया है। इसके संकलन में ४५ ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। लेश्या कोश के समान ही इसमें भी तीन बिन्दुओं को आधार माना है। लेकिन इसमें कुछ ग्रन्थों का भी उल्लेख किया गया । इस प्रकार के कोश जैन दर्शन को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
सम्पादक-जे. एल जैनी : जैन जेम डिक्सनरी (Jain Gem Dictionary)-इसका सम्पादन जैन दर्शन एवं जैन आगमों के ख्यातनामा विद्वान् जे० एल० जैनी ने किया। इसका प्रकाशन सन् १९१६ में आगरा से किया गया। जैन धर्म को आंग्ल भाषा के माध्यम से प्रस्तुत करने में श्री जैनी महोदय का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
यह कोश जैन पारिभाषिक शब्दों को समझने के लिए बहत उपयोगी है। इसमें सभी जैन-पारिभाषिक शब्दों को समझने के लिए वर्णानुक्रम से व्यवस्थित करके अँग्रेजी में अनुवाद किया गया है। इसका एक और प्रत्यक्ष लाभ यह रहा कि आंग्ल भाषी लोग भी जैन दर्शन एवं आगम के बारे में आसानी में समझ सके।
इस कोश को आधार बनाकर परवर्ती विद्वानों ने जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, बृहज्जैन शब्दार्णव, अल्प परिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश आदि का प्रणयन किया है।
क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी : जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-इस कोश के प्रणेता क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी हैं। वर्णी जी का जन्म १९२१ में पानीपत में हुआ। आपके पिता जय-भगवान एक वकील, जाने-माने विचारक और विद्वान् थे। इनको क्षय रोग हो गथा था । अत: एक ही फेफड़ा होते हुए भी आप अभी तक जैन वाङमय की श्रीवृद्धि कर रहे हैं। आपने सन् १९५७ में घर से संन्यास ग्रहण कर लिया तथा १९६३ में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। आपने शान्ति पथ प्रदर्शक, नये दर्पण, जैन-सिद्धान्त शिक्षण, कर्मसिद्धान्त आदि अनेक ग्रन्थों का भी प्रणयन किया।
यह कोश २० वर्षों के सतत अध्ययन के परिणामस्वरूप बना है। इन्होंने तत्त्वज्ञान, आचार शास्त्र, कर्मसिद्धान्त, भूगोल, ऐतिहासिक तथा पौराणिक राजवंश, आगम-धार्मिक, दार्शनिक सम्प्रदाय आदि से सम्बद्ध लगभग ६०००
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