Book Title: Jain Sahitya evam Sanskruti ke Vikas me Bhattarako ka Yogadan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 5
________________ मल्लिनाथ चरित्र. सद्भाषितावलि, जम्बू स्वामी चरित्र, श्रीपाल चरित्र, तत्वार्थसार दीपक सुकुमाल चरित्र । राजस्थानी कृतियाँ आराधना प्रतिबोधसार, नेमिश्वर गीत, मुक्तावलि गीत णमोकारक गीत, सोलहकारण रास, सारसीखा मणिरास तथा शान्तिनाथ फागु " आचार्य सोमकीर्ति (संवत् 1516-40 ) ने भी संस्कृत व हिन्दी को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया । इनकी सातव्यसन कथा, प्रद्य ुम्न चरित्र एवं यशोधर चरित्र संस्कृत में निबद्ध रचनाएँ हैं तथा गुर्वा - वलि, यशोधर रास, ऋषभनाथ की धूलि, त्रेपनक्रियागीत, आदिनाथ एवं मल्लगीत इनकी राजस्थानी कृतियाँ हैं। सभी कृतियाँ भाषा एवं शैली की दृष्टि से उत्तम रचनाएं हैं । कवि ने इन रचनाओं में जनसाधारण की भावनाओं को अच्छी तरह प्रदर्शित किया है तथा उसकी दृष्टि में वही नगर एवं ग्राम श्र ेष्ठ माने जाने चाहिए जिनमें जीववध नहीं होता । सत्याचरण किया जाता हो तथा नारी समाज का जहाँ अत्याधिक सम्मान हो । यही नहीं यहाँ के लोग अपने परिग्रह संचय की प्रतिदिन सीमा भी निर्धारित करते हों तथा जहाँ रात्रि को भोजन करना भी वर्जित हो । भ. सकल कीर्ति के शिष्य एवं लघु भ्राता बहन जिनदास संस्कृत एवं हिन्दी के प्रकाशमान नक्षत्र हैं। उन्होंने हिन्दी की सबसे अधिक सेवा की और उसमें 60 से भी अधिक कृतियाँ निबद्ध करके इस दिशा में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। उनकी रामसीतारास ( संवत 1520) राजस्थानी की प्रथम रामायण है जो छन्द संख्या की दृष्टि से रामायण से भी बड़ी है । बहन जिनदास 15वीं शताब्दी के विद्वान थे तथा मीरा व सूरदास के पूर्व ही उन्होंने हिन्दी के प्रचारप्रसार में महत्वपूर्ण योग दिया तथा जन साधारण की भाषा में सबसे अधिक रचनाएँ लिखीं । बहन जिनदास की हिन्दी की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं Jain Education International राम सीतारास, यशोधररास नागकुमाररास, परमहंसरास, आदि पुराणरास, हरिवंश पुराण, श्रविक रास, जम्बू स्वामीरास भद्रबाहु चाऊदन्त सबन्धरास धन्य कुमाररास, भविष्य दन्तरास, जीवन्धर रास. करकण्डुरास, पुष्पांजलिरास, सुभौम चक्रवर्तीरास, धनपालरास, सुदर्शनरास ज्ञानभूषण भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य थे । भट्टारक बनने से पूर्व ही वे साहित्य निर्माण में लग गये थे और मट्टारक पद छोड़ने के पश्चात भी वे इसी दिशा में लगे रहे । आदीश्वर फाग उनकी सर्वश्रेष्ठ व परिष्कृत रचना है । इसमें 501 फाग हैं जिनमें 262 हिन्दी के तथा शेष 239 पद्य संस्कृत में निवद्ध हैं। आदीश्वर फाग के अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाओं में पोषह रास, जलगावन रास तथा घटकर्म रास के नाम उल्लेखनीय हैं । 4. मो पूज्यो नृप मल्लि भैरव महादेवेन्द्र मुख्ये । षट्तकीगम शास्त्र कोविद मति जात मशश्चन्द्रमा || भव्याम्भोसह भास्करः शुभ करः संसार विच्छेदकः । सोऽव्याची विजयादि कीर्ति मुनियो मदारकाधीशवरः । 17वीं शताब्दी में होनेवाले भट्टारकों में भट्टारक रत्नकीर्ति एवं भट्टारक कुमुदचन्द्र का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। ये गुरु व शिष्य दोनों ही बड़े लोकप्रिय सन्त थे तथा जन-जन में भगवद् भक्ति को उभारने के लिये छोटे-छोटे भक्तिपरक पदों की रचना किया करते थे। नेमि राजुल को लेकर भी दोनों ही 3 २३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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