Book Title: Jain Ramkatha ki Pauranik aur Darshanik Prushthabhumi Author(s): Gajanan Narsimh Sathe Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 1
________________ . ६६६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड जैन रामकथा की पौराणिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि प्रा० डॉ० गजानन नरसिंह साठे, अध्यक्ष हिन्दी विभाग रा० आ० पोद्दार वाणिज्य महाविद्यालय, माटुंगा, बम्बई (१) रामकथा का विश्वव्यापकत्व कहते हैं, आज से लगभग साढ़े चार सहस्र वर्ष ** पूर्व अयोध्या में राम नाम के कोई एक परम प्रतापी राजा हो गए । उनकी महानता के कारण, उनके जीवन की अनेकानेक घटनाएँ तथा उनके व्यक्तित्व की विविध विशेषताएँ लोकमानस पर अंकित हो गई थी और उनकी कथा लोगों की जिह्वा पर घर किए हुई थीं। मौखिक परम्परा से प्रसारित उस कथा से सूत्र संकलित करते हुए, ई० पू० तीसरी-चौथी शताब्दी में वाल्मीकि नामक कवि ने अपने महाकाव्य "रामायण" अथवा "पौलस्त्य-वध" की संस्कृत में रचना की। इसी रामायण को भारत में "आदि काव्य" और उसके रचयिता को "आदिकवि' माना जाता है। यह काव्य ब्राह्मण परम्परा की रामकथात्मक रचनाओं का मूलाधार है। दूसरी ओर वीर (निर्वाण) शक ५३० में, अर्थात् ईसा की प्रथम शताब्दी में जैनाचार्य विमलसूरि ने प्राकृत में 'पउमचरियं' नामक कृति प्रस्तुत करते हुए, जैन-परम्परा की रामकथा लिपिबद्ध की। यही जैन रामकथा का सर्वप्रथम अर्थात् प्राचीनतम लिपिबद्ध रूप है। ___ वाल्मीकि रामायण से प्रेरणा लेकर अनेकानेक प्रतिभाशाली रचयिताओं ने परवर्ती काल में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश में छोटे-बड़े काव्य, चम्पूकाव्य और नाटक लिखे । आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी रामकथात्मक रचनाएँ विपुल मात्रा में की गई हैं और आज भी उस विषय पर रचनाएं की जा रही हैं। ___ अंग्रेजी, इतालियन, रूसी आदि योरोपीयन भाषाओं में भारत की रामकथात्मक कृतियों के अनुवाद हो गए हैं । पाश्चात्य अनुसन्धानकर्ताओं, समीक्षकों और पाठकों ने वाल्मीकि रामायण, उत्तर-रामचरित, रामचरितमानस जैसी कृतियों का अनुशीलन करते हुए, उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। सीलोनी, बर्मी, चीनी, तिब्बती, कम्बोडियन, हिन्द चीनी आदि एशियायी भाषाओं में रामकथात्मक साहित्य न्यूनाधिक मात्रा में लिखा गया है। धार्मिक दृष्टि से भारत में वैदिक (ब्राह्मण), बौद्ध और जैन नामक तीन परम्पराएं पर्याप्त रूप में विकसित हैं । इन तीनों ने रामकथा को अपनाते हुए, उसे अपने-अपने दृष्टिकोण के रंग में रंग दिया-हाँ, बौद्ध-परम्परा में यह कथा अपेक्षाकृत बहुत कम विकसित रही है। ब्राह्मण परम्परा ने नर राम को पहले भगवान विष्णु का अवतार माना और अन्त में परब्रह्म के स्थान पर स्थापित किया, तो जनों ने उन्हें "शलाका पुरुष" माना । बौद्ध जातककथाओं के अनुसार, तथागत गौतम बुद्ध अपने पूर्वजन्म में राम के रूप में उत्पन्न हो गए थे। ब्राह्मण और जैन-परम्परा के आचार्यों तथा कवियों ने अपने-अपने दार्शनिक सिद्धान्तों, उपासना-मार्गों और साधना-प्रणालियों को प्रसारित करने के हेतु रामकथा को माध्यम बना लिया है । इस दृष्टि से अनेक पुराणों, पौराणिक कथाओं तथा पौराणिक शैली के चरित काव्यों की रचना विपुल मात्रा में हो गई है। धार्मिक-दार्शनिक पक्ष को छोड़ भी दें, तो भी यह स्वीकार करना पड़ता है कि रामकथा व्यावहारिक, * जैन साहित्य की दृष्टि से राम को हुए ८६ हजार वर्ष हुए हैं । -सम्पादक देवेन्द्र मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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