Book Title: Jain Prachin Stavanadi Sangraha
Author(s): Ujamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publisher: Ujamshi Thakarshibhai Ahmedabad

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Page 422
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ ॥ श्री पार्श्वनाथर्नु चैत्यवंदन ॥ श्रीपाश्र्वनाथ नमस्तुभ्यं, बिन्न विध्वंस कारिणे ॥ निर्मलंस प्रभानंदे, परमानंद दायिने ॥ १ ॥ अश्वसेनावनोपाल, कुलचुडामणि प्रभो ॥ वामामूनो नमस्तुभ्यं श्रीमत् पाच जिनेश्वर ॥ २ ॥ क्षितिमंडल मुकुट, धार्मिक निकटं, विश्वप्रगट, चारुभटं ।। भवरेणु समीरं जलनिधि तीरं, सुरगिरिधीरं गंभीरं जगत्रय शरणं दुर्गतिहरणं दुर्द्धरचरणं सुख करणं ॥ श्रीपार्वजिने नतनागेंद्र, नमत सुरेंद्र कृतभद्रं ॥ ३ ॥ कमठे धरणेद्रेच, स्वोचितं कर्म कुर्वती ॥ प्रभोस्तुल्य मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथ श्रियेऽस्तु वः ॥ ४ ॥ ॥अथ श्री वीतरागाष्टकं ॥ शिवं शुद्धबुद्धपरं विश्वनाथ, न देवो न बंधुन कर्मनकर्ता ॥ नअंग नसंग न चेच्छा न कामं, चिदानंद रुपं नमो वीतरागं ॥१॥ न बंधो न मोक्षो न रागादिलोकं, न योगं न भोगं न व्याधिर्न शोकं ॥ न क्रोधं न मानं न माया न लोभं ॥ चि० ॥२॥ न हस्ता न पादौ न घ्राणं न जिव्हा, न चक्षुर्न कर्ण न वक्त्रं न निद्रा ॥ न स्वामी न भृत्यं न देवो न मयं ।। चि० ॥ ३॥ न जन्मं न मृत्यु न मोदं न चिंता, न क्षुद्रो न भीतो न कृश्यं न तुंद्रा।। न स्वेदं न खेदं न वर्ण न मुद्रा ॥ चि० ॥४॥ त्रिदंडे त्रिखंडे हरे विश्वनाथं, हृषीकेश विध्वस्त कारिजालं ॥ न पुण्यं न पापं न चाक्षादि पाणं ॥ चि० ॥५॥ न बालो न वृद्धो न तुच्छो न For Private And Personal Use Only

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