Book Title: Jain Prachin Stavanadi Sangraha
Author(s): Ujamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publisher: Ujamshi Thakarshibhai Ahmedabad

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Page 425
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૩૨ भिर्यटळ राजराणी रमापामे, भक्तिभाव जो मळे, कल्पतरुथी अधिक दाता, जगतत्राता जयकरो; नित्यजापनपीए पापखपीए, स्वामी नाम शंखेश्वरो- ॥ ८ ॥ जराजर्जरी भूतयादव सैन्य, रोगनिवारता, वढीयार देशे नित विराजे, भविक जीवने तारता; प्रभुतणां पदपद्मसेवा, रुपकहे प्रभुता वरो; नित्यजापनपीए पाप खपीए, स्वामी नाम शंखेश्वरो ॥ ९॥ ॥अथ श्री शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद ॥ ॥ सेवो पास संखेसरो मन शुद्ध, नमो नाथ निश्थें करी एक बुद्धे ॥ देवी देवला अन्यने शु नमो छो, अहो भव्यलोको भुला कां भमो छो॥१॥ त्रिलोकना नाथने शुं तो छो, पडया पाशर्मा भूतने को भजो छो । सुरधेनु छंडो अजा शु अजो छो, महापंथ मकी कुपंथे वजो छो ॥२॥ तजे कोण चिंतामणि काचमाटें, ग्रहे कोण रासभने हस्ति साटें ॥ मुरद्रुम उपाडी कुण आक वावे,महा मूढ ते आकुला अंत पावे ॥ ३ ॥ किहां कांकरो ने किहां मेरुशृंगं, किहां केशरीने किहां ते कुरंगं॥ किहां विश्वनाथं किहां अन्य देवा करो एकचितें प्रभु पास सेवा ॥ ४॥ पूजा देव प्रभावती माणनाथं सहु जीवने जे करेछे सनायं ।। महा तत्व जाणी सदा जेह ध्यावे, तेनां दुःख दारिद्र रें पलावे ॥५॥ पामी मानुषोने वृथा का ममो छो, कुशीले करी देने कां दमो छो॥ नहीं मुक्तिवासं विना वीतरागं, भजो भगवंतं तजा दृष्टिरागं ॥६॥ उदयरत्न भाखे सदा हेत आणी, दयाभाव को प्रभु दास जाणी ॥ आज माहरे मोतीडे मेह वुठा, प्रभु पास संखे परो आप तूठा ॥७॥ ॥ समात॥ For Private And Personal Use Only

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