Book Title: Jain Parampara me Purvagyan Ek Vishleshan Author(s): Nagrajmuni Publisher: Z_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf View full book textPage 6
________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ चिन्तन के विविध बिन्दु : ४८४ : तरह जो सर्वोत्तम तथा सर्वाक्षर-सन्निपातलब्धि हेतुक है, उस ज्ञान का वर्णन है। पद-परिमाण साढ़े बारह करोड़ है। धूलिकाएँ चूलिकाएँ पूर्वो का पूरक साहित्य है। उन्हें परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत तथा अनुयोग (दृष्टिवाद के भेदों) में उक्त और अनुक्त अर्थ की संग्राहिका ग्रंथ-पद्धतियाँ कहा गया है। दृष्टिवाद के इन भेदों में जिन-जिन विषयों का निरूपण हुआ है, उन-उन विषयों में विवेचित महत्त्वपूर्ण अर्थो-तथ्यों तथा कतिपय अविवेचित अर्थों-प्रसंगों का इन चूलिकाओं में विवेचन किया गया है। इन चूलिकाओं का पूर्व वाङ्मय में विशेष महत्त्व है । ये चूलिकाएँ श्रुत रूपी पर्वत पर चोटियों की तरह सुशोभित हैं। चूलिकाओं की संख्या पूर्वगत के अन्तर्गत चतुर्दश पूर्वो में प्रथम चार पूर्वो की चूलिकाएँ हैं । प्रश्न उपस्थित होता है, दृष्टिवाद के भेदों में पूर्वगत एक भेद है । उस में चतुर्दश पूर्वो का समावेश है । उन पूर्वो में से चार-उत्पाद, अग्रायणीय, वीर्य-प्रवाद तथा आस्ति-नास्ति-प्रवाद पर चलिकाएँ हैं। इस प्रकार इनका सम्बन्ध चारों पूर्वो से होता है । तब इन्हें परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत और अनुयोग में उक्त, अनुक्त अर्थोविषयों की जो संग्राहिका कहा गया है, वह कैसे संगत है ? विभाजन या व्यवस्थापन की दृष्टि से पूर्वो को दृष्टिवाद के भेदों के अन्तर्गत पूर्वगत में लिया गया है । वस्तुतः उनमें समग्र श्रुत की अवतारणा है, अतः परिकर्म, सत्र तथा अनुयोग के विषय भी मौलिकतया उनमें अनुस्यूत हैं ही। . चार पूर्वो के साथ जो चूलिकाओं का सम्बन्ध है, उसका अभिप्राय है कि इन चार पूर्वो के संदर्भ में इन चुलिकाओं द्वारा दृष्टिवाद के सभी विषयों का जो-जो वहाँ विस्तृत या संक्षिप्त रूप में व्याख्यात हैं, कछ कम व्याख्यात हैं, कुछ केवल सांकेतिक हैं, विशदरूपेण व्याख्यात नहीं हैं, संग्रह हैं। इसका आशय है कि वैसे चूलिकाओं में दृष्टिवाद के सभी विषय सामान्यत: संकेतित हैं, पर विशेषतः जो विषय परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत तथा अनुयोग में विशदतया व्याख्यात नहीं है, उनका इनमें प्रस्तुतीकरण है । पहले पूर्व की चार, दूसरे की बारह, तीसरे की आठ तथा चौथे की दश चूलिकाएं मानी गयी हैं। इस प्रकार कुल ४+१२++१०=३४ चूलिकाएं हैं। वस्तु वाङमय चुलिकाओं के साथ-साथ 'वस्तु' संज्ञक एक और वाङ्मय है, जो पूर्वो का विश्लेषक या १ लोके जगति श्रुत-लोके वा अक्षरस्योपरि बिन्दुरिव सारं सर्वोत्तमं सर्वाक्षरसन्निपातलब्धि-हेतुत्वात् लोकबिन्दुसारम् । -अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० २५१५ २. यथा मेरो चूलाः, तत्र चूला इव दृष्टिवादे परिकर्म सूत्रपूर्वानुयोगोक्तानुक्तर्थसंग्रहपरा गन्थपद्धतयः। -वही पृ० २५१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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