Book Title: Jain Parampara me Dhyan
Author(s): Dharmichand Chopda
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 2
________________ जैन परम्परा में ध्यान / १२१ मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः । बंधाय विषयाऽऽसंगि मोक्षं निर्विषयं स्मृतम् ॥ अर्थात् मन का संयम मोक्ष का और असंयम कर्मबन्ध का कारण है। बन्धन का कारण और जो विषयों से बंधा नहीं है, वह मोक्ष का कारण है । मन की शुभाशुभ परिणति के द्वारा ग्रात्मा किस प्रकार उत्थान और पतन की ओर अग्रसर होती है, तत्सम्बन्धी प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का उदाहरण बड़ा ही मार्मिक है, जिन्होंने मन की अशुभ परिणति के द्वारा नरक के योग्य दलिक इकट्ठे कर लिए धौर कुछ ही समय पश्चात् मन की शुभ परिणति के प्रभाव से केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। । एक गुजराती कवि ने कहा है अजब घे वेग आ मननो, गजब थे शक्ति पण भारी । घणा ज्ञानी अने ध्यानी, गया मन शत्रुयी हारी ॥ - पुपनिषद् विषयासक्त मन महान् सन्त मानन्दघनजी ने भगवान् कुन्थुनाथजी की स्तुति करते हुए लिखा है-हे भगवन् ! यह मन नपुंसकलिंग है, निर्बल है, बुजदिल है, परन्तु आज चिन्तन करता हूँ तो लगता है कि यह मन सारे संसार की शक्तियों को पीछे धकेल देता है। सब कार्य करना सरल है, परन्तु मनोनिग्रह करना कठिन है । मनोनिग्रह के लिए गौतमस्वामी ने केशीस्वामी को बताया मणो साहसिओ भीमो दृट्ठस्सो परिधाव > तं सम्मं तु निगिoिहामि, धम्मसिक्खाए कंथगं ॥ Jain Education International -- उत्तराध्ययनसूत्र प्र. २३, गा. ५९ अर्थात् मनरूपी साहसिक और भयानक दुष्ट घोड़ा चारों घोर भागता रहता है । जिस प्रकार जातिमान् घोड़ा शिक्षा द्वारा सुधर जाता है, उसी प्रकार मन रूपी घोड़े को सम्यक् प्रकार से धर्म की शिक्षा द्वारा में वश में रखता हूँ । महमूद गजनवी को विजयोल्लास में हाथी पर बिठाया जाता है। जब गजनवी महावत से अंकुश मांगता है तो महावत कहता है---अंकुश तो महावत के हाथ ही रहता है। गजनवी तुरन्त हाथी से नीचे उतर जाता है और कहता है-जिसका अंकुश मेरे हाथ में नहीं है, उस पर मैं सवार नहीं होता। अभिप्राय यह कि मनरूपी घोड़े की लगाम अपने हाथ में होनी चाहिये। मन चपल घोड़े के समान है, जिसे धर्म-शिक्षा रूपी लगाम से ही वश में किया जा सकता है । चंचल मन को वश में करने के लिए गीता में दो उपाय बताये हैं अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते । अर्थात् यह मन दो प्रकार से वश में किया जा सकता है अभ्यास के द्वारा और वैराग्य के द्वारा | अभ्यास का अर्थ है एकाग्रता की पुनः पुनः साधना और वैराग्य का अर्थ है विषयों के प्रति विरक्ति एकाग्रता के अभ्यास और विषयविरक्ति के द्वारा मन को काबू में किया जा सकता है । For Private & Personal Use Only आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम www.jainelibrary.org

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