Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ जैन-न्याय प्रभेद, विषय, फल और प्रमाणाभास आते हैं। प्रस्तुत पुस्तकमें प्रमाणके विषयको चर्चा नहीं आ सकी। यदि उसे भी समाविष्ट किया जाता तो ग्रन्थका कलेवर ड्योढ़ा तो अवश्य हो जाता। इसलिए उसे छोड़ देना पड़ा। जिस-जिस विषयके पूर्व पक्ष और उत्तर पक्षमें जिन-जिन ग्रन्थोंका उपयोग किया गया है या जिन ग्रन्थों में वे विषय चचित हैं, उनका नीचे टिप्पणीमें निर्देश कर दिया गया है । तथापि इस ग्रन्थका विशेष माधार आचार्य प्रभाचन्द्रके प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र हैं। न्यायशास्त्रको उच्च कक्षाओंमें इन्हींका पठन-पाठन विशेष प्रचलित है। अतः इन ग्रन्थोंके पाठक छात्र इस पुस्तकका उपयोग मूल ग्रन्थको समझने में कर सकते हैं, लिखते समय उनकी कठिनाईका ध्यान बराबर रखा गया है। यदि मेरी इस पुस्तकसे जैन न्यायके पाठक छात्रोंकी कठिनाई दूर हो सकी और जैन न्यायके पठन-पाठनको प्रोत्साहन मिला तो मैं अपने श्रमको सार्थक समझंगा। इस पुस्तकके 'प्रमाणके भेद' शीर्षक दूसरे प्रकरणमें मतिज्ञानके और परोक्षप्रमाणके अन्तर्गत श्रुतज्ञानके भेदोंके स्वरूपकी चर्चा विस्तारसे की गयी है और दिगम्बर तथा श्वेताम्बर शास्त्रों में वर्णित मत. भेदोंका संकलन किया गया है, वह प्रकरण परीक्षार्थियों के लिए तो उतने उपयोगी नहीं हैं किन्तु ज्ञानकी चर्चा के प्रेमी जिज्ञासु जनोंके लिए विशेष उपयोगी हैं । जैन न्याय-जैसे नीरस विषयके साहित्यको प्रकाशित करनेकी स्वीकृति देकर भारतीय ज्ञानपीठके संचालकोंने जो विद्यानुराग प्रदर्शित किया है उसके लिए मैं उनका और विशेष रूपसे ज्ञानपीठके मन्त्री बा० लक्ष्मीचन्द्रजी जैनका आभारी हूँ। डॉ. गोकुलचन्द्र जैनने इस पुस्तकको सुव्यवस्थित रूप देने तथा शीघ्र प्रकाशित करने में काफ़ी श्रम किया है। अतः मैं उनका भी आभारी हूँ। और भारतीय ज्ञानपीठके प्रधान व्यवस्थापक श्री जगदीशजीके सहयोगके बिना तो कुछ भी सम्भव नहीं था, अतः उनका आभार स्वीकार किये बिना मैं कैसे रह सकता हूँ। महामहोपाध्याय पं० गोपीनाथजी कविराजने अस्वस्थ होते हुए भी प्राक्कथन लिखनेका कष्ट किया, उनका मैं विशेष रूपसे आभारी हूँ। हिन्दी में जैन न्यायपर यह पहला प्रयत्न है, इसलिए त्रुटियाँ सम्भव हैं। अतएव अन्त में न्यायशास्त्रधुरीणोंसे मैं अपनी ग़लतियोंके लिए क्षमा-याचना करता हूँ। आशा करता हूँ कि उनकी ओर वे हमारा ध्यान आकर्षित करेंगे। श्रीस्याद्वाद महाविद्यालय ) वाराणसी - कैलाशचन्द्र शास्त्री वीरशासन दिवस २४६२ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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