Book Title: Jain Nari Samaj me Prayukta Vishishta Shabdavali Author(s): Alka Prachandiya Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 5
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ अभ्युदय का मूलाधार आचार है / आचार के आधार पर विकसित विचार किसी भी जीवन का निर्मापक तथा आदर्श और शोभा हुआ करता है / इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि विचार की जन्मभूमि आचार ही है। आचार और विचार सम्पन्न जीवन चर्या को जब कभी प्रेषणीयता की जरूरत पड़ती है तब शब्द और भाषा की आवश्यकता हुआ करती है / शब्द यद्यपि स्थूल होते हैं और इस स्थूल साधन के द्वारा सूक्ष्म सम्पदा को अभिव्यक्त करने का प्रयास हम आरम्भ से ही करते आ रहे हैं। भाव और विचार से आचार की साज-सँभार हुआ करती है और उसे व्यक्त करने के लिए तदनुसार शब्दावलि की अपेक्षा होती है / जैन नारी समाज में अहिंसक, विकास बोधक शब्दों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करने का विधान है। हित-मित-प्रिय वाणी के व्यवहार का निर्देश भाषा समिति में किया गया है। साथ ही कम से कम भाषा के व्यवहार से काम चलाना हितकारी है। इमसे वाचालता से बचना होता है। जैन परिवारों में इसीलिए रात्रि में गोचरी प्रक्रिया के लिए कोई स्थान नहीं है। इस चर्या का उत्कृष्ट रूप हमें आज जैन संतों में सहज ही परलक्षित है। यहाँ पूरी की पूरी चर्या में सात्विकता है, शालीनता है और है समसावप्रवणता / कहावत है, जैसे भाव वैसी ही भाषा / अहिंसक की भाषा सदा अहिंसक ही होगी। भावाभिव्यक्ति के अनुसार ही शब्दों का प्रयोग हुआ करता है / इस प्रकार जैन नारी समाज में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दावलि और उसमें व्यंजित धार्मिकता बोध हमें सहज में ही हो जाता है / सन्दर्भ ग्रन्थ सूची: 1. भारत वाणी, 3. मुहावरा मीमांसा 5. अभिधान चिन्तामणि कोश 7. अपभ्रश भाषा में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावलि 9. क्रिया कोश 11. मूलाचार 13. हिन्दी का आदि काल 15. भाषा विज्ञान 17. हिन्दी व्याकरण 19. दर्शन और जीवन 2. हिन्दी मुहावरा कोश 4. अच्छी हिन्दी 6. हिन्दी शब्द सागर 8. जैन सिद्धान्त कोश 10. तत्वार्थसार 12. जैन हिन्दी कावियों का काव्य शास्त्रीय मूल्यांकन 14. जैन लाक्षणिक शब्दावलि 16. काव्य प्रकाश 18. हिन्दुतान की पुरानी सभ्यता 20. बोल चाल * + 0 280 | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान www.jaineibrPage Navigation
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