Book Title: Jain Murtikala ki Parampara
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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________________ जैन मतिकला की परम्परा 0 डॉ. मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी प्राध्यापक, कला-इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-२२१००५ (उ० प्र०) जैन धर्म में मूर्तिनिर्माण एवं पूजन की परम्परा कब से प्रारम्भ हुई, इसका निश्चित निर्धारण कठिन है। प्रस्तुत लेख में हम उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मुख्यतः इसी समस्या पर विचार करेंगे और किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करेंगे। महावीर से पूर्व तीर्थकर (या जिन) मूर्तियों के अस्तित्व का कोई भी साहित्यिक या पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है । जैन ग्रन्थों में महावीर की यात्रा के सन्दर्भ में उनके किसी जैन मन्दिर में जाने या जिन-मूर्ति के पूजन का अनुल्लेख है। इसके विपरीत यक्ष-आयतनों एवं यक्ष-चैत्यों (पूर्णभद्र और मणिभद्र) में उनके विश्राम करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।' जैन धर्म में मूर्तिपूजन की प्राचीनता से संबद्ध सबसे महत्त्वपूर्ण वह उल्लेख है जिसमें महावीर के जीवनकाल में ही उनकी मूति के निर्माण का उल्लेख है । साहित्यिक परम्परा से ज्ञात होता है कि महावीर के जीवनकाल में ही उनकी चन्दन की एक प्रतिगा का निर्माण किया गया था। इस मूर्ति में महावीर को दीक्षा लेने के लगभग एक वर्ष पूर्व राजकुमार के रूप में अपने महल में ही तपस्या करते हुए अंकित किया गया है । चूंकि यह प्रतिमा महावीर के जीवनकाल में ही निर्मित हुई, अतः उसे जीवन्त स्वामी या जीवित स्वामी संज्ञा दी गई। साहित्य और शिल्प दोनों ही में जीवन्तस्वामी को मुकुट, हार एवं मेखला आदि अलंकरणों से युक्त एक राजकुमार के रूप में निरूपित किया गया है । महावीर के समय के बाद की भी ऐसी मूर्तियों के लिए जीवन्तस्वामी शब्द का ही प्रयोग होता रहा। ___ जीवन्तस्वामी मूर्तियों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय यू० पी० शाह को है। साहित्यिक परम्परा को विश्वसनीय मानते हुए शाह ने महावीर के जीवनकाल से ही जीवन्तस्वामी मूति की परम्परा को स्वीकार किया है।' उन्होंने साहित्यिक परम्परा की पुष्टि में अकौटा (बडौदा, गुजरात) से प्राप्त जीवन्तस्वामी की दो गुप्तकालीन कांस्य १. शाह, यू० पी०, बिगिनिग्स आव जैन आइकानोग्राफी, संग्रहालय पुरातत्त्व पत्रिका, लखनऊ, अंक ६, जून, १६६२, पृ० २. २ द्रष्टव्य-शाह, यू० पी०, ए यूनीक जैन इमेज आव जीवन्तस्वामी, जर्नल ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट आव बड़ौदा, खं० १, अं०१, सितम्बर १६५१(१९५२), पृ० ६२-६६; साइड लाइट्स आन दि लाईफ-टाइम सेण्डलवुड इमेज आव महाबीर, जर्नल ओरिण्यटल इन्स्टीट्यूट आव बड़ौदा, खं० १, अं४, जून १६५२. पृ० ३५८-६८; श्री जीवन्तस्वामी (गुजराती), जैन सत्यप्रकाश, वर्ष १७, अं० ५-६, १६५२, पृ० १८-१०६; अकोटा ब्रोन्जेज बम्बई, १९५६ पृ० २६-२८. ३ शाह, यू० पी०, श्री जीवन्तस्वामी, जैन सत्यप्रकाश, वर्ष १७, अं० ५-६, पृ० १०४. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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