Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 11
________________ ज्ञान मंजूषा के संरक्षक श्री विमलचंदजी महमवाल परिवार किसी कवि ने कहा है यस्मिन् श्रुतपथं प्राप्ते, दृष्टे स्मृति मुपगते । आनन्दं यान्ति भूतानि, जीवितं तस्य शोभते ।। जिनके जीवन के बारे में जानकर एवं अनुभूति कर सभी को आनन्द मिलता है उन्हीं का जीवन सार्थक और शोभायमान है। कोलकाता जैन समाज के ऐसे ही आदर्श व्यक्तित्व हैं श्रावक रत्न श्री विमलचंदजी महमवाल। आपका जन्म ईस्वी सन् 1946 को कलकत्ता नगर में हुआ। धर्मपरायणा मातु श्री लक्ष्मी देवी ने बाल्यकाल से ही माता मदालसा के समान विशुद्ध धर्म एवं कर्म के संस्कार देने प्रारंभ कर दिए अत: श्रेष्ठ संस्कारों की नींव मजबूत रूप से स्थापित हो गई। पिता श्री कपूरचंदजी महमवाल समाज के सप्रसिद्ध, कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता थे। आपको व्यावहारिक एवं व्यावसायिक दक्षता दिलवाने में किसी प्रकार की कमी उन्होंने नहीं रखी। उसी अनुभव ज्ञान की बदौलत आज आप सफलता एवं प्रसिद्धि के उत्तुंग शिखर पर हैं। किसी कवि ने कहा है प्रगति शिला पर चढ़ने वाले बहुत मिलेंगे। कीर्तिमान करने वाला तो विरला होता है।। विकास के मार्ग पर गति करना सभी को प्रिय होता है परंतु उनमें कुछ लोग ही सर्वश्रेष्ठ बनते हुए समाज में एक कीर्तिमान स्थापित करते हैं। आपश्री व्यवसाय से जौहरी हैं। कोलकाता के सुविख्यात जौहरियों में आपकी गणना होती है। जिस प्रकार दीपावली पर्व के आने पर दीप मालाओं की पंक्तियाँ सजती है उसी प्रकार आपका जीवन भी अनेक पदों पर सुशोभित हैं। आपका गांभीर्यपूर्ण शांत व्यक्तित्व, माधुर्य युक्त अल्पभाषित्व, सरल एवं स्नेहिल स्वभाव, उदार मनोवृत्ति, दिग्व्यापी वर्चस्व एवं अद्भुत सामर्थ्य के कारण हर संस्था आपको विशिष्ट पद प्रदान करने हेतु अग्रसर रहती है।

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