Book Title: Jain Meghdutam Author(s): Mantungsuri, Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 5
________________ भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद से प्राप्त हुई। इसके सम्पादन का भार भी डॉ० रविशंकर मिश्र को ही सौंपा गया। हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि उन्होंने अत्यन्त श्रम करके इस बालावबोध वृत्ति की प्रामाणिक प्रेस कापी तैयार की। मूलग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद का प्रारम्भिक कार्य भी डॉ. रविशंकर मिश्र ने ही किया था किन्तु भाषा-सौष्ठव और प्रामाणिकता के लिए हमने यह कार्य बाद में १० ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी को सौंपा। उन्होंने डॉ. मिश्र के अनुवाद को उपजीव्य बनाते हुए नये सिरे से इस अनुवाद कार्य को पूर्ण किया। अतः इस प्रसंग पर हम डॉ० (विशंकर मिश्र के साथ-साथ पं० ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते हैं। आज एक दीर्घ अवधि के बाद हम इस ग्रन्थ को इसकी विस्तृत भूमिका, मूल श्लोक, उस पर बालावबोधवृत्ति तथा हिन्दी अनुवाद के साथ विद्वत् जगत के समक्ष प्रस्तुत करते हुए आत्म-सन्तोष का अनुभव कर रहे हैं। इस ग्रन्थ के शोधात्मक अध्ययन से लेकर सम्पादन, अनुवाद और प्रकाशन तक के समग्र कार्य में संस्थान के निदेशक डॉ० सागरमल जैन केन्द्रीभूत रहे हैं । वे संस्थान के अभिन्न अंग हैं, अतः उन्हें धन्यवाद देना भी एक औपचारिकता होगी। साथ ही हमें इस कार्य में डॉ० सुदर्शनलाल जैन और डॉ० अशोक कुमार सिंह का भी सहयोग उपलब्ध रहा है । मूलग्रन्थ, वृत्ति तथा अनुवाद के संशोधन में यदि डॉ० अशोक कुमार सिंह का सहयोग न मिला होता तो इसके प्रकाशन की प्रक्रिया और अधिक पिछड़ गयी होती । अतः हम उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं । ग्रन्थ के सुन्दर एवं प्रामाणिक मुद्रण के लिए हम वर्द्धमान मुद्रणालय के आभारी हैं। विद्वत् जगत से हमारी एक ही अपेक्षा है कि वे ग्रन्थ के सम्यक् अवलोकन के पश्चात् हमें अपने मन्तव्यों से अवगत करायें ताकि हम आत्म-तोष की अनुभूति कर सकें। भूपेन्द्र नाथ जैन मन्त्री श्री सोहनलाल जैन विद्या प्रसारक समिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 376