Book Title: Jain Marriage Ceremony English and Gujarati
Author(s): 
Publisher: Pallavi and Dilip Mehta

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Page 10
________________ め Pinte France ॐ नमो लोग्ने सव्व साहू, मोयडे पाघ्योः शुले । सो पंथ नमुछारो, शिलाव भी तले सव्वधावयास, वम्रो व भयो जहिः । मंगलाएं य सव्वेंसिं, जाहिरांगार जातिाः स्वाहांतं य पहं ज्ञेयं, पठभं हवछ मंगलम् । वप्रोपरि व भयं, पिधानं हे हरक्षको महाप्रलावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपोलूला, उचिता पूर्वसूरिलि यश्यैनं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि यहैः- सहा । तस्य न स्याह् लयं, व्याधि- राधिश्याऽपि उहायन्। ॥८॥ (लावार्थ : नवधना सारस्व३प पंथ परमेष्ठिने 3 पूर्वक नमस्कार पुरीले स्नात्म रक्षा डरनार वर स्तोत्रनुं हुं स्मरा धुं छु. धर रहेला अरिहंत लगवंतने ॐ पूर्य नमस्कार. भुज धर रहेला आवर मस्त वस्त्र समान सर्व सिद्ध लगवंतोने नमस्कार. ||४| ॥या Πξ ॥७॥ संगमी रक्षा करनार खायार्य लगवंतोने नमस्कार. जे हाथना घट जायुध समान उपाध्याय लगवानने नमस्कार. पगना शुभ रक्ष सेवा सर्व साधु भगवंतोने नमस्कार. जा पायजे उरेल नमस्कार घरातल पर वक्रभय शीला समान छे. प्रथम मंगलद्वारी छे. शरीर शरीर महारथी वत्र समान जनावे छे. सर्व पापनो नाश करनार छे सर्वनुं मंगल डरनार छे. 'स्वाहा' संतवाणा मंत्रने भावो भेजे, पर वमय रक्षारा डरनार सा मंत्र छे. घरमेष्ठिना पांय पहोमांथी हलवेली ने पूर्वसूरियां क्षुद्र, उपद्रव वगेरेनो नाश करनारी छे. परमेष्ठिन हो बडेजा 'रक्षा' नो पाठ पुरे छे. तेने पीडतां नथी.) उहेली सा महाप्रभावशाली 'रक्षा' ही पड़ा लय, व्याधि साधि वगेरे

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