Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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अनुक्रमणिका. सप्त व्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं व्रजन्ति ॥ पागंतरे ॥ पापा धिके पुंसि सदा नवंति ॥ १०५ ॥ इति व्यसननामानि ॥ द्यूताज्यवि नाशनं नलनृपः प्राप्तोऽथवा पांमवा,, मद्यात् कमनृपश्च राघव पिता पापईि तो दूपितः ॥ मांसानेणिकनूपतिश्च नरके चौर्याहिनष्टा न के, वेश्यातः कृत पुण्यको गतधनोऽन्यस्त्रीरतो रावणः॥ १०६ ॥ इतिव्यसनफलम्॥ अर्थःजुवटुं रमवू, मांसनदण करवू, मदिरापान, वेश्यासेवन, पापदि एटले हिंसा करवी, चोरी करवी, पारकी स्त्री सेववी ए सात फुर्व्यसन जे , ते लोकने विपे घोरातिघोर रूपी एवं जे नरक तेने विपे लजाय ॥ १०५ ॥ तेमां जूवटाथी नलराजा अने पांमवो पण राज्यन्रष्ट थया, मदिराथी कमराजा नीहारिकानो दाह थयो, हिंसाथी दशरथ राजाने श्रवणकावडीयाना मा वित्रोयें पुत्र वियोगनो शाप दीधो, ए दपंप पाम्यो, मांसथी श्रेप्पिकराजा अने बीजा नरकने विषे गया, चोरीथी घणा जीव नाश पाम्या, वेश्याथी कृतपुण्य राजा कुःखी थयो,अने पारकी स्त्रीने विषेप्रीति राखवाथी राज्यरूपी धन गमावनारा एवा रावणनो नाश थयो. माटे व्यसनोने सेववां नहीं.
बीजो ग्रंथ, श्रीनुवननानु केवलीनो रास दृष्ट १६ए थी प्रारंन थयो जे. एमां श्रीनुवननानुजीने व्यवहारराशिमां श्राव्या पडी पहेलवहेलुं जे वखत अनार्य मनुष्यमां उपजq थयुं बे,ते वखत रसगृहिमां लुब्ध थवाथी नरका दिकनां कुःख अनंतिवार पाम्यां बतां 'चमां अनंतिवार को वखत काणो, कोई वखत क्लीब, कुरूपो आदिक वि६ि,खें करी अनंता पुजलपरावर्त अनार्य मनुष्यपणे कस्या ने तेमां देव,गुरु तथा धर्मनुं नाम पण जाण्युं नथी: __एम मोहराजाना एकेका किंकरथी अनंतअनंतिवार मनुष्यादिक पणुं पा मीने अशातावेदी तेतो रही परंतु समकेत पाम्या पली वमीने वलीपण मोहें मुंझायाथी जे सुःख पाम्या ,ते सांजलतां नकजीवोनारंवाटां उनां थाय.
त्रीजो ग्रंथ, समकेतना षट् स्थानकना स्तवननी अनुक्रमणिका. प्रथम जीव ने तेनुं स्वरूप नास्तिकवादीना खंमन पूर्वक. ..... २७५ बीजु आत्मानित्य ले तेनुं स्वरूप बौधमतना खंमन पूर्वक. .... २७६ त्रीजुं आत्मा कर्ता अने चोथु आत्मा नोक्ता ए वे स्थानकनुं 'रूप वेदांती अने सांख्यमतियोना खंमनपूर्वक कर्तुं . .... २५५

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