Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 05
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ अथ ॥ बालावबोधसहित कर्पूरप्रकर प्रारंनः॥ -~-~~- ~ ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तम् ॥ कर्पूरप्रकरः शमामृतरसे वक्रेऽचंज्ञतपः,शुक्लध्यानतरुप्रसूननि चयः पुण्याब्धिफेनोदयः॥मुक्तिश्रीकरपीडनेसिचयोवाकामधे नोः पयो,व्याख्यालदयजिनेशपेशलरदज्योतिश्चयः पातु वः॥ अर्थः- (व्याख्यालय के०.) व्याख्याननी वेलानेविषे देखातो एवो (जिनेशपेशलरदज्योतिश्चयः के) श्रीजिनप्रनुना मनोहर एवा जे दांत • तेनी ज्योति जे कांति अर्थात् जिनदशनाति तेनो चय जे समूह ते (वः के०) तमोने (पातु के०) रक्षण करो. ते केवो ने जिनदशन द्युतिसमूह ? तो के (शमामृतरसे के०) शांतिरूप जे अमृतजल तेनेविपे (कर्पूरप्रकरः के०) कर्पूरसमूहयुक्त एवो तथा वली (वक्रेऽचंशतपः के०) मुखरूप जे चश्मा तेनी ज्योत्स्नारूप एवो, तथा वली (शुक्तध्यानतरुप्रसू ननिचयः के०) शुक्तध्यानरूप जे वृद तेना पुष्पनो डे समूह जेमां एवो अने ( पुण्याब्धिफेनोदयः के०) पुण्य समुश्ना फीनो के उदय जेनेविषे एवो तथा (मुक्तिश्रीकरपीडनेऽवसिचयः के०) मुक्तिरूप जे श्री तेनीसाथें विवाहनेविषे स्व वस्त्ररूप एवो अने (वाक्कामधेनोः के०) वाणीरूप काम धेनुना (पयः के०) मुग्ध जेवो एवो जिनेशदंतज्योतिःसमूह , तेतमारी र दा करो. ए आशीर्वादकाव्य कह्यु. प्रा शार्दूलविक्रीडित काव्य में तेम सर्व हवे पनीनां काव्य ते शार्दूलविक्रीडित वगेरे बंदोमां जाणवां ॥ १ ॥ हवे आ ग्रंथनेविषे कहेवानां हारनां नामो एक काव्यथी कहे जे. नव्यालब्ध्वार्यदेशं कथमपि नृनवं सत्कुलं साधुसंगं, बोधं देवादिशक्तीः कुरुत शमयतिश्रावकत्वव्रतानि ॥ सप्तदे त्री जिनार्चा नयविनय सुवैराग्य दानादिपुष्टिं, शब्दद्यूतक्रु धादेर्जयमपि सुकृतादेषु सत्कर्म मुत्त्यै ॥२॥

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