Book Title: Jain Jyotish Sahitya
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 15
________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ श्रीमद्देवेन्द्रसूरीणां शिष्येण ज्ञानदर्पणः । विश्वप्रकाश श्चक्रे श्रीहेमप्रभसूरिणा ॥ श्री देवेन्द्र सूरि के शिष्य श्री हेमप्रभ सूरि ने विश्वप्रकाशक और ज्ञानदर्पण इस ग्रन्थ को रचा । मेघमाला की श्लोक संख्या १०० बतायी गयी है। प्रो. एच. डी. वेलंकर ने जैन ग्रंथावली में उक्त प्रकार का ही निर्देश किया है । २४२ रत्नशेखर सूरि ने दिनशुद्धिदीपिका नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिखा है । इनका समय १५ वीं शती बताया जाता है । ग्रन्थ के अन्त में निम्न प्रशस्ति गाथा मिलती है । सिरिक्यरसेण गुरुपट्ट - नाहीस रिहमतिलयसूरीणं । पायपसाया एसा, रयणसिहरसूरिणा विहिया ॥ १४४॥ वज्रसेन गुरु के पट्टधर श्री हेमतिलक सूरि के प्रसाद से रत्नशेखर सूरि ने दिनशुद्धि प्रकरण की रचना की । इसे " मुनिमणभवणपयासं " अर्थात् मुनियों के मन रूपी भवन के प्रकाशित करनेवाला कहा है । इसमें कुल १४४ गाथाएँ हैं । इस ग्रन्थ में वारद्वार, कालहोरा, वारप्रारम्भ, कुलिकादियोग, वर्ज्यप्रहर, नन्दभद्रादि संज्ञाएं, क्रूरतिथि, वर्ज्यतिथि, दग्धातिथि, करण, भद्राविचार, नक्षत्रद्वार, राशिद्वार, लग्नद्वार, चन्द्रअवस्था, शुभरवियोग, कुमारयोग, राजयोग, आनन्दादि योग, अमृतसिद्धियोग, उत्पादियोग, लग्नविचार, प्रयाणकालीन शुभाशुभ विचार, वास्तु मुहूर्त, षडष्टकादि, राशिकूट, नक्षत्रयोनि विचार, विविध मुहूर्त्त, नक्षत्र दोष विचार, छायासाधन और उसके द्वारा फलादेश एवं विभिन्न प्रकार के शकुनों का विवेचन किया गया है | यह ग्रन्थ व्यवहारोपयोगी है । चौदहवीं शताब्दी में ठक्कर फेरू का नाम भी उल्लेखनीय है । इन्होंने गणितसार और जोइससार ये दो ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण लिखे हैं । गणितसार में पाटीगणित और परिकर्माष्टक की मीमांसा की गयी है । जोइससार में नक्षत्रों की नामावलि से लेकर ग्रहों के विभिन्न योगों का सम्यक् विवेचन किया गया है । उपर्युक्त ग्रन्थों के अरिरिक्त हर्षकीर्ति कृत जन्मपत्र पद्धति, जिनवल्लभ कृत स्वप्नसंहितका, जयविजय कृत शकुनदीपिका, पुण्यतिलक कृत ग्रहायुसाधन, गर्गमुनि कृत पासावली, समुद्र कवि कृत सामुद्रिकशास्त्र मानसागर, कृत मानसागरीपद्धति, जिनसेन कृत निमित्तदीपक आदि ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण हैं । ज्योतिषसार, ज्योतिषसंग्रह, शकुनसंग्रह, शकुनदीपिका, शकुनविचार, जन्मपत्री पद्धति, ग्रहयोग, ग्रहफल, नाम के अनेक ऐसे संग्रह ग्रन्थ उपलब्ध हैं, जिनके कर्ता का पता ही नहीं चलता है । अर्वाचीन काल में कई अच्छे ज्योतिर्विद् हुए हैं जिन्होंने जैन ज्योतिष साहित्य को बहुत आगे बढ़ाया है ।' यहाँ प्रमुख लेखकों का उनकी कृतियों के साथ परिचय दिया जाता है । इस युग १. केवलज्ञानप्रश्न चूडामणि का प्रस्तावना भाग. सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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