Book Title: Jain Jyotish Sahitya
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 16
________________ २४३ जैन ज्योतिष साहित्य का सर्वेक्षण प्रमुख मेघविजय गणि हैं। ये ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे । इनका समय वि० सं० १०३६ के आसपास माना गया है । इनके द्वारा रचित मेघ महोदय या वर्षप्रबोध, उदयदीपिका, रमलशास्त्र और हस्तसंजीवन आदि मुख्य हैं। वर्षप्रबोध में १३ अधिकार और ३५ प्रकरण हैं। इसमें उत्पात प्रकरण, कर्पूरचक्र, पद्मिनीचक्र, मण्डलूपकरण, सूर्य और चन्द्रग्रहण का फल, मास, वायु विचार, संवत्सर का फल, ग्रहों के उदयास्त और वक्री अयन मास पक्ष विचार, संक्रान्ति फल, वर्ष के राजा, मंत्री, धान्येश, रसेश आदि का निरूपण, आय-व्यय विचार, सर्वतोभद्रचक्र एवं शकुन आदि विषयों का निरूपण किया गया है । ज्योतिष विषय की जानकारी प्राप्त करने के लिये यह रचना उपयोगी है । हस्तसंजीवन में तीन अधिकार हैं। प्रथम दर्शनाधिकार में हाथ देखने की प्रक्रिया, हाथ की रेषाओं पर से ही मास, दिन, घटी, पल आदि का कथन एवं हस्तरेखाओं के आधार पर से ही लग्नकुण्डली बनाना तथा उसका फलादेश निरूपण करना वर्णित है। द्वितीय स्पर्शनाधिकार में हाथ की रेखाओं के स्पर्श पर से ही समस्त शुभाशुभ फल का प्रतिपादन किया गया है। इस अधिकार में मूल प्रश्नों के उत्तर देने की प्रक्रिया भी वर्णित है । तृतीय विमर्शनाधिकार में रेखाओं पर से ही आयु, सन्तान, स्त्री, भाग्योदय, जीवन की प्रमुख घटनाएँ, सांसारिक सुख, विद्या, बुद्धि, राज्यसम्मान और पदोन्नति का विवेचन किया गया है । यह ग्रन्थ सामुद्रिक शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और पठनीय है । उभयकुशल का समय १८ वीं शती का पूर्वार्द्ध है। ये फलित ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे । इन्होंने विवाह पटल और चमत्कारचिन्तामणि टबा नामक दो ग्रन्थों की रचना की है। ये मुहूर्त और जातक, दोनों ही विषयों के पूर्ण पंडित थे । चिन्तामणि टबा में द्वादश भावों के अनुसार ग्रहों के फलादेश का प्रतिपादन किया गया है । विवाह पटल में विवाह के मुहुर्त और कुण्डली मिलान का सांगोपांग वर्णन किया गया है। लब्धचन्द्रगणि-ये खरतरगच्छीय कल्याणनिधान के शिष्य थे। इन्होंने वि. सं. १०५१ में कार्तिक मास में जन्मपत्री पद्धति नामक एक व्यवहारोपयोगी ज्योतिष का ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ में इष्टकाल, मयात, भयोग, लग्न, नवग्रहों का स्पष्टीकरण, द्वादशभाव, तात्कालिक चक्र, दशबल, विंशोत्तरी दशा साधन आदि का विवेचन किया गया है । बाधती मुनि-ये पार्श्व चन्द्रगच्छीय शाखा के मुनि थे। इनका समय वि. सं. १०८३ माना जाता है। इन्होंने तिथिसारिणी नामक ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। इसके अतिरिक्त इनके दो-तीन फलित-ज्योतिष के भी मुहूर्त सम्बन्धी उपलब्ध ग्रन्थ हैं । इनका सारणी ग्रन्थ, मकरन्द सारणी के के समान उपयोगी है। यशस्वतसागर-इनका दूसरा नाम जसवंतसागर भी बताया जाता है। ये ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और दर्शन शास्त्र के धुरन्धर विद्वान थे । इन्होंने ग्रहलाघव के ऊपर वार्तिक नाम की टीका लिखी है । वि. सं. १०६२ में जन्मकुण्डली विषय को लेकर " यशोराज-पद्धति" नामक एक व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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