Book Title: Jain Jyotish Sahitya
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 13
________________ २४० आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ __ महेन्द्रसूरि-ये भृगुपुर' निवासी मदन सूरि के शिष्य फिरोजशाह तुगलक के प्रधान सभापण्डित थे। इन्होंने नाडीवृत्त के धरातल में गोलपृष्ठस्थ सभी वृत्तों का परिणमन करके यन्त्रराज नामक ग्रह गणित का उपयोगी ग्रन्थ लिखा है। इनके शिष्य मलयेन्दु सूरि ने इस पर सोदाहरण टीका लिखी है । इस ग्रन्थ में परमाक्रान्ति २३ अंश ३५ कला मानी गयी है। इसकी रचना शक संवत् १२९२ में हुई है। इसमें गणिताध्याय, यन्त्रघटनाध्याय, यन्त्ररचनाध्याय, यन्त्रशोधनाध्याय और यन्त्रविचारणाध्याय ये पांच अध्याय हैं । क्रमोत्कमज्यानयन, भुजकोटिज्या का चापसाधन, क्रान्तिसाधक धुज्याखंडसाधन, धुज्याफलानयन, सौम्य गणित के विभिन्न गणितों का साधन, अक्षांश से उन्नतांश साधन, ग्रन्थ के नक्षत्र ध्रुवादिक से अभीष्ट वर्ष के ध्रुवादिक का साधन, नक्षत्रों के ढक्कर्मसाधन, द्वादश राशियों के विभिन्न वृत्त सम्बन्धी गणितों का साधन, इष्ट शन्कु से छायाकरण साधन यन्त्रशोधन प्रकार और उसके अनुसार विभिन्न राशि नक्षत्रों के गणित का साधन, द्वादशभाव और नवग्रहों के स्पष्टीकरण का गणित एवं विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहों के साधन का गणित बहुत सुन्दर ढंग से बताया गया है ! इस ग्रन्थ में पंचांग निर्माण करने की विधि का निरूपण किया है। भद्रबाहु संहिता अष्टांग निमित्त का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके आरम्भ के २७ अध्यायों में निमित्त और संहिता विषय का प्रतिपादन किया गया है। ३० वें अध्याय में अरिष्टों का वर्णन किया गया है । इस ग्रन्थ का निर्माण श्रुतकेवली भद्रबाहु के वचनों के आधार पर हुआ है। विषयनिरूपण और शैली की दृष्टि से इसका रचनाकाल ८-९ वीं शती के पश्चात् नहीं हो सकता है । हां, लोकोपयोगी रचना होने के कारण उसमें समय-समय पर संशोधन और परिवर्तन होता रहा है । इस ग्रन्थ में व्यंजन, अंग, स्वर, भौम, छन्न, अन्तरिक्ष, लक्षण एवं स्वप्न इन आठों निमित्तों का फलनिरूपणसहित विवेचन किया गया है। उल्का, परिवेशण, विद्युत, अभ्र, सन्ध्या, मेघ, वात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, गर्भलक्षण, यात्रा, उत्पात, ग्रहचार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहूर्त, तिथि, करण, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, इन्द्रसम्पदा, लक्षण, व्यंजन, चिन्ह, लग्न, विद्या, औषध, प्रभृति सभी निमित्तों के बलाबल, विरोध और पराजय आदि विषयों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। यह निमित्तशास्त्र का बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी ग्रन्थ है । इससे वर्षा, कृषि, धान्यभाव, एवं अनेक लोकोपयोगी बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। केवलज्ञान प्रश्नचूडामणि के रचयिता समन्तभद्र का समय १३ वीं शती है। ये समन्त विजयप के पुत्र थे । विजयप के भाई नेमिचन्द्र ने प्रतिष्ठातिलक की रचना आनन्द संवत्सर में चैत्रमास की पंचमी को की है। अतः समन्तभद्र का समय १३ वीं शती है । इस ग्रन्थ में धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, अभूत् भृगुपुरे वरे गणकचक्र-चूडामणिः कृती नृपीतसंस्तुतो मदनसुरिनामा गुरुः । तदीयपदशालिना विरचिते सुयन्त्रागमे, महेन्द्रगुरुणोद्धताजनि विचारणि यन्त्रजा ॥ यन्त्रराज, अ. ५, श्लोक ६८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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