Book Title: Jain Dharm me Bhakti ka Sthan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_2_001685.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ जैनधर्म में भक्ति का स्थान 96 नामस्मरण से पापों के पुंज का नाश हो जाता है ( आवश्यकनियुक्ति 1076 ) / आचार्य विनयचंद्र भगवान् को स्तुति करते हुए कहते हैं--- पाप-पराल को पुंज बन्यो अति, मानो मेरू आकारो। ते तुम नाम हुताशन सेती, सहज हो प्रजलत सारो / / हे प्रभु आपकी नाम रूपी अग्नि में इतनी शक्ति है कि उससे मेर समान पाप समूह भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। किंतु यह प्रभाव प्रभु के नाम का नहीं अपितु साधक को आत्मिक शक्ति का है। जैसे मालिक के जागने पर चोर भाग जाते हैं, उसी प्रकार प्रभु के स्वरूप के ध्यान से आत्म-चेतना या स्वशक्ति का भान होता है और पाप रूपी चोर भाग जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4