Book Title: Jain Dharm me Achelkatva aur Sachelkatva ka Prashna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf

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Page 23
________________ जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न ९९ क्योंकि ऐसा नहीं करने पर शरीर में विकार ( कामोत्तेजना ) उत्पन्न होने पर लज्जित होना पड़ता है। ३. अचेलता का तीसरा गुण कषायरहित होना है, क्योंकि वस्त्र के सद्भाव में उसे चोरों से छिपाने के लिये मायाचार करना होता है। वस्त्र होने पर मेरे पास सुन्दर वस्त्र है, ऐसा अहंकार भी हो सकता है, वस्त्र के छीने जाने पर क्रोध तथा उसकी प्राप्ति में लोभ भी हो सकता है जबकि अचेलक में ऐसे दोष उत्पन्न नहीं होते हैं। - ४. सवस्त्र होने पर सुई, धागा, वस्त्र आदि की खोज में तथा उसके सीने, धोने, प्रतिलेखना आदि करने में ध्यान और स्वाध्याय का समय नष्ट होता है। अचेल को ध्यान-स्वाध्याय में बाधा नहीं होती। ५. जिस प्रकार बिना छिलके ( आवरण ) का धान्य नियम से शुद्ध होता है, किन्तु छिलकेयुक्त धान्य की शुद्धि नियम से नहीं होती, वह भाज्य होती है, उसी प्रकार जो अचेल है उसकी शुद्धि निश्चित होती है, किन्तु सचेल की शुद्धि भाज्य है ( एवमचेलवतिनियमादेव भाज्या सचेले, भगवतीआराधना-४२३ पर विजयोदया टीका, पृ० ३२२ ), अर्थात् सचेल की शुद्धि हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है। यहाँ दिगम्बर परम्परा और यापनीय परम्परा का अन्तर स्पष्ट है। दिगम्बर परम्परा यह मानती है कि सचेल मुक्त ( शुद्ध ) नहीं हो सकता, चाहे वह तीर्थङ्कर ही क्यों न हो जबकि यापनीय परम्परा यह मानती है कि स्त्री, गृहस्थ और अन्यतैर्थिक सचेल होकर भी मुक्त हो सकते हैं। यहाँ भाज्य ( विकल्प ) शब्द का प्रयोग यापनीयों की उदार और अनेकान्तिक दृष्टि का परिचायक है। ६. अचेलता में राग-द्वेष का अभाव होता है। राग-द्वेष बाह्य द्रव्य के आलम्बन से होता है। परिग्रह के अभाव में आलम्बन का अभाव होने से राग-द्वेष नहीं होते, जबकि सचेल को मनोज्ञ वस्त्र के प्रति राग-भाव हो सकता है। ७. अचेलक शरीर के प्रति उपेक्षा भाव रखता है, तभी तो वह शीत और ताप के कष्ट सहन करता है। ८. अचेलता में स्वावलम्बन होता है और देशान्तर गमन में किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं होती। जिस प्रकार पक्षी अपने पंखों के सहारे चल देता है, वैसे ही वह भी प्रतिलेखन ( पीछी ) लेकर चल देता है। ९. अचेलता में चित्त-विशुद्धि प्रकट करने का गुण है – लँगोटी आदि से ढंकने से भाव-शुद्धि का ज्ञान नहीं होता है। १०. अचेलता में निर्भयता है, क्योंकि चोर आदि का भय नहीं रहता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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