Book Title: Jain Dharm ki Parampara Itihas ke Zarokhese
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 10
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहाससे पहचाना जाने लगा। तारणपंथ के चैत्यालयों में मूर्ति के अध्यात्मनिष्ठा आज इसकी एक अलग पहचान बनाती है। इसी स्थान पर शास्त्र की प्रतिष्ठा की गई। इस प्रकार सोलहवीं एवं प्रकार श्वेताम्बर स्थानकवासी-परम्परा में दीक्षित कानजी स्वामी सत्रहवीं शताब्दी में जैन-परम्परा में इस्लाम धर्म के प्रभाव के ने महान् अध्यात्मवादी दिगम्बर-संत कुन्दकुन्द के समयसार फलस्वरूप एक नया परिवर्तन आया और अमूर्तिपूजक सम्प्रदायों जैसे अध्यात्म और निश्चय नये प्रधानग्रन्थ के अध्ययन से दिगम्बरका जन्म हुआ फिर भी पुरानी परम्पराएँ यथावत् चलती रहीं। परम्परा में इस शताब्दी में एक नये आन्दोलन को जन्म दिया। पुनः बीसवीं शती में गांधीजी के गुरुतुल्य श्रीमदराजचन्द्र के इस प्रकार जैन-धर्म में भी युग-युग में देश और काल के कारण अध्यात्म-प्रेमियों का एक नया संघ बना। यद्यपि सदस्य प्रभाव से अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, जिनकी संक्षिप्त झाँकी संख्या की दृष्टि से चाहे यह संघ प्रभावशाली न हो किन्तु उनकी इस आलेख में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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