Book Title: Jain Dharm ka Ek Vilupta Sampraday Yapaniya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 3
________________ जैन धर्म का एक विलुप्त सम्प्रदाय यापनीय ६१७ हैं। किन्तु इस व्याख्या से बोटिक शब्द पर कोई विशेष प्रकाश नहीं आगे चलकर इस वर्ग ने स्वयं अपने लिए ‘यापनीय' शब्द को पड़ता। मात्र बोटिकों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। स्वीकार कर लिया होगा क्योंकि यापनीय शब्द की व्याख्या प्रशस्त मेरी दृष्टि में प्राकृत के 'बोडिय' के स्थान पर 'वाडिय' शब्द अर्थ में भी सम्भव है। अभिलेखों में भी ये अपने को ‘यापनीय' के होना चाहिए था जिसका संस्कृत रूप वाटिक होगा। 'वाटिक' शब्द का रूप में ही अंकित करवाते थे । अर्थ वाटिका या उद्यान में रहने वाला है । विशेषावश्यकभाष्य में । शिवभूति की कथा से स्पष्ट है कि बोटिक मुनि नग्न रहते थे, भिक्षादि यापनीय संघ को उत्पत्ति प्रसंग को छोड़कर सामान्यतया ग्राम या नगर में प्रवेश नहीं करते थे यापनीय सम्प्रदाय कब उत्पन्न हुआ? यह प्रश्न विचारणीय और वे नगर के बाहर उद्यानों या वाटिकाओं में ही निवास करते थे। है। भगवान महावीर का धर्म संघ कब और किस प्रकार विभाजित होता अत: सम्भावना यह है कि वाटिका में निवास के कारण वे गया इसके प्राचीनतम उल्लेख हमें कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की वाडिय या बाडिय कहे जाते होगें जो आगे चलकर 'बोडिय' हो गया। स्थविरावलियों में मिलता है। ये स्थविरावलियाँ स्पष्ट रूप से हमें यह हमें कल्पसूत्र में वेसवाडिय (वैश्यवाटिक) उडुवाडिय (ऋतुवाटिक) बताती हैं कि यद्यपि महावीर का धर्मसंघ विभिन्न गणों में विभाजित आदि गणों के उल्लेख मिलते हैं५ । जिस प्रकार श्वेतपट प्राकृत में हुआ और ये गण शाखाओं में, शाखायें कुल में और कुल सम्भोगों में सेतपट> सेअपड> सेअअड> सेबड़ा हो गया, उसी प्रकार सम्भवतः विभाजित हुए, फिर भी नन्दीसूत्र और कल्पसूत्र की स्थविरावलियों में वाटिक) वाडिय> बाडिय > बोडिय हो गया हो । आज भी मालव ऐसा कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है जिससे महावीर के धर्मसंघ के प्रदेश में उद्यान को बाडी कहा जाता है । इसी प्रसंग में मुझे मालवी यापनीय, श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में विभाजित होने की कोई बोली में प्रयुक्त 'बोडा' शब्द का भी स्मरण हो जाता है। गुजराती एवं सूचना मिलती हो । इन दोनों स्थविरावलियों में भी कल्पसूत्र की मालवी में केशरहित मस्तक वाले व्यक्ति को 'बोडा' कहा जाता है। स्थविरावली अपेक्षाकृत प्राचीन है, इसमें दो बार परिवर्धन हुआ है। सम्भावना यह भी हो सकती है कि लुंचित केश होने से उन्हें 'बोडिय' अन्तिम परिर्वधन वीर निर्वाण सम्वत् ९८० अर्थात् ईसा की पाँचवीं कहा गया हो । शब्दों के रूप परिवर्तन की ये व्याख्याएँ मैनें अपनी शताब्दी का है । नन्दीसूत्र की स्थविरावली भी इसी काल की है बुद्ध्यनुसार करने की चेष्टा की है। भाषाशास्त्र के विद्वानों से अपेक्षा है किन्तु दोनों स्थविरावलियाँ स्थूलभद्र के शिष्यों से अलग हो जाती कि इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालें। हैं। इनमें कल्पसूत्र की स्थविरावली का सम्बन्ध वाचक वंश से जोड़ा प्रो० एम० ए० ढाकी बोटिक की मेरी इस व्याख्या से जाता है। सम्भवत: गणधरवंश संघ व्यवस्थापक आचार्यों की सहमत नहीं है । उनका कहना है कि 'बोटवू' शब्द आज भी गुजराती परम्परा (Administrative lineage) का सूचक है जबकि वाचक में भ्रष्ट या अपवित्र के अर्थ में प्रयुक्त होता है। सम्भवत: यह देशीय वंश उपाध्यायों या विद्यागुरुओं की परम्परा का सूचक है । वाचक शब्द हो और उस युग में भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता हो । अत: वंश विद्यावंश है । यह विद्वान् जैनाचार्यों के नामों का कालक्रम से श्वेताम्बरों ने उन्हें साम्प्रदायिक अभिनिवेशवश 'बोडिय' कहा होगा। संकलन है। क्योंकि श्वेताम्बर परम्परा उनके लिए मिथ्यादृष्टि, प्रभूततर विसंवादी, कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थविरावलियाँ अन्तिम रूप से सर्वविसंवादी और सर्वापलापी जैसे अनादरसूचक शब्दों का प्रयोग कर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक की परम्परा का वीरनिर्वाण से एक हजार वर्ष रही थी। भोजपुरी और अवधी में बोरना या बूड़ना शब्द डूबने के अर्थ तक अर्थात् ई. पू. पाँचवीं शती से ईसा की पाँचवीं शती तक का में प्रयुक्त होते हैं । व्यञ्जना से इसका अर्थ भी पतित या गिरा हुआ हो उल्लेख करती हैं, फिर भी इसमें सम्प्रदाय भेद की कहीं चर्चा नहीं हैं, सकता है। मात्र गणभेद आदि की चर्चा है । 'बोडिय' शब्द की इन विभिन्न व्याख्याओं में मुझे प्रो० श्वेताम्बर परम्परा के उपलब्ध आगमिक साहित्य स्थानाङ्ग और ढाकी की व्याख्या अधिक युक्तिसंगत लगती है । क्योंकि इस आवश्यकनियुक्ति में हमें सात निह्नवों का उल्लेख मिलता है । (निह्नव व्याख्या से यापनीय और बोटिक शब्द पर्यायवाची भी बन जाते हैं१७ वे हैं जो सैद्धान्तिक या दार्शनिक मान्यताओं के सन्दर्भ में मतभेद रखते यदि यापनीय का अर्थ तिरस्कृत या निष्कासित और बोटिक का अर्थ हैं, किन्तु आचार और वंश वही रखते हैं।) इन सात निह्नवों में कहीं भ्रष्ट या पतित है, तो दोनों पर्यायवाची ही सिद्ध होते हैं। किन्तु हमें भी बोटिक (बोडिय) जिन्हें सामान्यतया दिगम्बर मान लिया जाता है, यह स्मरण रखना होगा कि ये दोनों नाम उन्हें साम्प्रदायिक दुरभिनिवेश किन्तु वस्तुत: जो यापनीय हैं, का उल्लेख नहीं है । बोटिक सम्प्रदाय के वश दिये गये हैं । जहाँ श्वेताम्बरों ने उन्हें बोडिय (बोटिक-भ्रष्ट) का सर्वप्रथम उल्लेख आवश्यक मूलभाष्य की गाथा १४५ से १४८ कहा, वहीं दिगम्बरों ने उन्हें यापनीय-तिरस्कृत या निष्कासित कहा। तक में मिलता है२२ । ये गाथायें हरिभद्र की आवश्यकनियुक्ति की टीका इनके लिए बोटिक शब्द का प्रयोग केवल श्तेताम्बर परम्परा के में नियुक्ति गाथा ७८३ के पश्चात् संकलित हैं । इस प्रकार श्वेताम्बर आगमिक व्याख्या ग्रन्थों तक ही सीमित रहा है, इन ग्रन्थों के आगमिक साहित्य आवश्यक मूलभाष्य की रचना के पूर्व तक बोटिक, अतिरिक्त इस शब्द का प्रयोग अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होता है। यापनीय एवं दिगम्बर परम्पराओं के सम्बन्ध में हमें कोई सूचना नहीं Jain Education International For Private & Personal Use 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