Book Title: Jain Dharm aur Samajik Samta
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_1_001684.pdf
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________________ 161 जैनधर्म और सामाजिक समता स्थानांगसूत्रम्, अभयदेवसूरिवृत्ति, (प्रकाशक-- सेठ माणेकलाल, चुन्नीलाल, अहमदाबाद, विक्रम संवत् 1994) सूत्र 3/202, वृत्ति, पृ. 154 25. से असई उच्चागोए असई णीयागोए। णो हीणे णो अइरिते णो पीहए / / इतिसंखाय के गोथावादी, के माणावादी कंसि वा एगे गिज्झे ? तम्हापडिए णो हरिस णो कुज्झे - आचारांग, (सं. मधुकरमुनि )1/2/3/75 26. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, संग्रहका -विजयमूर्ति, लेख क्रमांक 8,31,41,54,62. 67, 69 26अ. आवश्यकचूर्णि, जिनदासगणि, ऋषभदेव के सरीमल संस्था, रतलाम, भाग 1, पृ. 554 ब. भक्तपरिज्ञा, 128 स, तित्थोगालिअ, 777 27. आचारांग, सं. मधुकरमुनि, 1/2/6/102 2(अ) स्थानांग, सं. कन्हैयालालजी कमल, 3/202 (ब) स्थानांग, अभयदेववृत्ति, पृ. 154-155 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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