Book Title: Jain Dharm Prakash 1964 Pustak 080 Ank 08
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Reg. No. G50 भाषाटीका-वीरू भणियइ श्रीमहावीर देवु गाथासुई नमउं किसउ अथु पणमउं जु परमेश्वरू बोधा गाधं सु पद पदवी नीर पूराभीराम किस उं संसारू भणितु दावानलु तीय तणउ छइ जीवाहिंसा विरल लहरी संगमागाह देहं जु दाहु तापु तीयहई नीरू पानीय किसउ अथु चूला वेलं गुरू गम मणी संकुल दूर पारं जिम नीरि दावानल नट दाह उपसमइ / तिम सारं वीरा गम जलनिधि सादरं साधु सेचे // 2 // श्रीमहावीरू प्रणमि अइ / संसार नउ दाह उप भाषाटीका-वीरागम जलनिधि श्रीमहावीर समइ अनइ जु श्रीमहावीरू किसठ संमो. संमोह / देव नाउ सिद्धान्त समुद्र सादर परायणु हुई रूपिणी धूलि तीय हरिवा कारणि समीरू महावायु साधु रूड़ी परि सेवकं / जु किस बोध कहियइ सरीखउ / जिम महावायु धूलि अपहरद तिम ज्ञानु तिणि करी अगाधु सुपद भणियइ भला परमेसरू संमोह अपहरइ / अनइ माया रसादा. पद नउ मागु तेऊ भणितु नीरू पुरू तिणि करी माया भणित रसार भूमि तीय विडारिवा नइ अभिरामु मनोहरू अनइ जु आगम किस जीव कारणि सारू क्षीरू / हल जिम हलि करि तणी अहिंसा तेइ अविरल सा घणी लहरि तीय भूमि विदारियइ तिम स्वामी माया विदारई तणइ संगमि करी अगाह देहु अलंघनीय सरीरू। अनइ जु प्रभु गिरि सारू भणियइ मेरू तीय चूलावेलं चूलाइ भणितु वेला जिय हृद गरूया सारिखउ धीरू / जिम मेरू किण ही चलावी छई जि गम पाठ विशेष तेई जि मणि ती ए न सकियइ तिम सु जगन्नाथु पुण शुभ ध्यानइ संकुलु दूर वेगलउ पारू जीय नउ अनइ सारू तउ देव दानवि मानवि कहीं चलावी न सकियई प्रसनु इस श्रीमहावीर नउ आगम जलनिधि इसउ श्री महावीरदेउ नित हउँ प्रणमउ // 1 // सु सादरू पूंवकु साधु रूडी परि सेवउं // 3 // गाथाभावाव नाम सुर दानव मानवेन गाथाचूला विलोल कमलावलि मालितानि / आमूला लोल धूली बहुल परिमला संपूरितामि नत लोक समीहितानि लीढ लोलालिमाला / कामं नमामि जिनराज पदानि तानि // 2 // झंकारा रावसारा मलदल कमला भाषाटीका-विलोकोत्तर जिनराज भणियई गार भूमि निवासे / श्रीतिर्थकर तीयना पाय हलं नमउं / नमस्कारउं नया संसार सारे वरकमल करे , जे तीर्थकरना पाय किसा? भावि करि भक्ति तार हाराभिरामे / करी अब नाम प्रणामता जि सुर दानव मानव वाणी संदोह देहे भव विरह वरं तणी इन स्वामी तियं तणी चूला वीणी तिहा देहि मे देवि सारं // 4 // जिवेलोल चंचल जि कमल तीह तणी आवलि श्रेणितणी करी मालित पूजित अनइ अभिनत भाषाटीका-हे देवि ! श्रुत देवते, मे मह्यं नम्यां लोकानां समीहित जि पूरई ति जिनराजना सारं प्रधानं प्रस्तावत् मोक्षं देहि / हे श्रुतदेवति पग काम अतिशय करी नमउं प्रणम // 2 // महई सारू मोक्ष देहि / जु किस सारू भव (मनुसंधान 7 04 2052) पर પ્રકાશક : દીપચંદ ઝવણલાલ શાહ, શ્રી જૈન ધર્મ પ્રસારક સભા-ભાવનગર મુદ્રક : ગરધરલાલ કુલચંદ શાહ, સાધના મુદ્રણાલય-ભાવનગર For Private And Personal Use Only

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