Book Title: Jain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 08
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०० પીન ક્રમ પ્રકાશ 1948 ढंग से विस्तृत प्रस्तावना, शब्द कोष, विविध प्रतियों से पाठभेद संग्रह, अन्य साहित्य से तुलनात्मक विवेचना के साथ प्रकाशित करना होगा । इतना विशाल कार्य एक व्यक्ति तो क्या एक संस्था का भी नहीं हैं । कहने के लिये हमारी समाज में अनेकों प्रकाशिनी संस्थाओंने जन्म लिया है जिसमें से कुछ मुरझा गई और कुछ मंद गति हो चल रही हैं। कई जन्म पा रही है पर जहाँ तक इन सब का व्यव स्थित संगठन नहीं होगा मन चाहा काम होना संभव नहीं । हमें कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिये कार्य का बंटवाटा करा लेना होगा, अन्यथा एक ही काम कई स्थानों से कई प्रकार से होकर व्यर्थ का समय एवं अर्थ का व्यय हो रहा है वह नहीं रुकेगा । एवं नवीन ग्रन्थों का चुनाव किये बिना यद्वातद्वा साधारण साहित्य का ढेर लग जायगा पर उपयोगी एवं महत्तापूर्ण ग्रन्थों को प्रकाशन का अवसर ही नहीं मिलेगा । इसी प्रकार प्रचार की सुव्यवस्था के बिना जहां आव श्यक नहीं, पुस्तकालयों- ज्ञानभंडारों में एवं १-१ व्यक्ति के पास पचीस पचास प्रतियो भक्ष्य बन रही है और योग्य व्यक्तियों एवं संस्थाओं खोजने पर भी एक प्रति नसीब प्राप्त नहीं होती । 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतना प्रासंगिक निवेदन करने के पश्चात् मूल विषय पर आता हूँ । मध्यकालीन वे. जैन साहित्य में कुलक संज्ञक सैकड़ो रचनायें प्राप्त होती हैं। बाह्य दृष्टि से ये छोटी छोटी कृतिये हैं पर अपने अपने विषय को स्पष्ट करने में इन का अत्यंत महत्व है । थोडे से वाक्यों में जिस विषय पर रचना की गई है। उसका निरूपण बडी कुशलता से करने के कारण ' गागर में सागर' भरा हुआ है, कह सकते हैं | कई बाते तो इन कुलको में जितने गुरूर रूप से निवेचित है अन्यन्त्र बड़े ग्रन्थों में भी अप्राप्त है । बड़े बड़े ग्रन्थों में अनेक विषय सामने से विवेचन व्यवस्थित नहीं होता पर कुछ छोटे होते हुए भी ग्रन्थ ही हैं और अनेकों बड़े ग्रन्थों का मिलता है । खोजझोन के अभाव में बहुत अनेक जैनभंडारों की प्रतियों एवं सूचीयों कुलकों का पत्ता चला, अत: इस लेख में सूची प्रकाशित की जा रहीं है । कुलकों की इसका भी उद्देख कर दिया गया है। जिन के अपने आप में पूर्ण सार-नवनीत इन में गुंफिन किया हुआ थोड़े से कुरुकों का हमें पता है, पर निरीक्षण करने पर बहुत से नवीन यथाज्ञात २५० के करीब कुलकों कि प्रतियें कौन से गंडारों में प्राप्त है सामने वैसा के नहीं है For Private And Personal Use Only

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