Book Title: Jain Darshan me Parmanu
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 7
________________ मोक्ष में मुक्त आत्मा का स्थान है । ये मुक्त आत्माएँ अरूपी व अशरीरी हैं| | उनमें सभी का स्वतंत्र अस्तित्व और जैन सिद्धांत अनुसार मुक्त होते| समय अर्थात निर्वाण के समय उनके शरीर की जो ऊँचाई होती है उस की दो तृतीयांश ऊँचाई मोक्ष में उसी आत्मा की होती है । तथापि जिस स्थान पर एक मुक्त आत्मा होती है उसी स्थान पर अन्य अनंत मुक्त आत्माएँ भी होती है । इसकी सरल समझ देते हुए जैन धर्मग्रंथों में उस के वृत्तिकार आचार्य भगवंत दीपक के प्रकाश का उदाहरण देते हैं । जैसे कि एक खंड में एक छोटा सा दीपक जलाया जाय तो संपूर्ण खंड में उसका प्रकाश फैल जाता है। यदि उसी खंड में ऐसे 20 - 25 या सेंकडों दीपक जलाया जाय तो खंड की दिवालों के ऊपर और खंड में सभी जगह सभी दीपक का प्रकाश होता है किन्तु किसी एक जगह केवल एक ही दीपक का प्रकाश हो ऐसा नहीं होता है । मध्यप्रदेश के प्रो. पी. एम. अग्रवाल के मतानुसार एक ही आकाश प्रदेश में अनंत परमाणुओं का अवस्थान व उसी प्रकार मोक्ष में समान आकाश प्रदेश में अनंत आत्माओं का अवस्थान बोस-आइन्स्टाइन स्टॅटिस्टिक्स द्वारा समझाया जा सकता है | डॉ. प्र. चु. वैद्य का किरणोत्सारी तारक के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र संबंधित अनुसंधान भी जैनदर्शन के पुद्गल परमाणु सिद्धांत का समर्थन करता है ।। उनके अनुसंधान अनुसार किरणोत्सारी तारे या सूर्य के गुरुत्वाकर्षण उतने ही द्रव्यमान व कद वाले सामान्य अर्थात किरणोत्सर्ग नहीं करने वाले तारे या सूर्य से कम होता है । उसका गणित उन्होंने समीकरण द्वारा दिया है । । जैनदर्शन अनुसार शक्ति गुण है और ' गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ' (गुण व पर्याययुक्त हो वह द्रव्य कहलाता है।) (तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय 5. सूत्र - 37) अनुसार वह द्रव्य में रहता है । और जो पुद्गल मूर्त / रूपी द्रव्य है उसे द्रव्यमान (mass) अवश्य होता है । प्रकाश की किरण भी द्रव्य हैं, गुण नहीं । " किरणा गुणा न, दव्वम् ।' उसी द्रव्य में ही शक्ति स्वरूप गुण है ।। अतः किरणोत्सारी तारा या सूर्य, प्रकाश का उत्सर्जन करता है तब वस्तुतः उसमें से सूक्ष्म कण ही उत्सर्जित होते हैं इन सूक्ष्म कण का भी द्रव्यमान (mass) होता है और वे जिनमें से उत्सर्जित होते हैं उसका द्रव्यमान भी कम होता है और वे उनके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में आये हुये पदार्थ पर आपात होते हैं और उसकी गति में या उस तारे या सूर्य की ओर के आकर्षण में 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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