Book Title: Jain Darshan me Parmanu Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 6
________________ रंगीन छवि के छपाई काम में भी लाल, पीला, भूरा व काले रंग का उपयोग होता है । गंध के दो प्रकार हैं :1. सुगंध, और 2. दुर्गध । रस के पाँच प्रकार हैं : 1. कडुआ, 2. तीखा, 3. कसैला, 4. खटटा, 5. मधुर । खारे (लवण) रस की यहाँ गिनती नहीं की है किन्तु कहीं कहीं खारे रस को छठे रस के रूप में ग्रहण किया है ।। स्पर्श के आठ प्रकार हैं : 1. गुरु अर्थात भारी, 2. लघु अर्थात हलका, 3. मृदु / कोमल, 4. कर्कश, 5. शीत / ठंडा, 6. उष्ण / गर्म, 7. स्निग्ध / |चिकना, 8. रुक्ष अर्थात् खुरदरा ।। | एक ही स्वतंत्र परमाणु में शीत या उष्ण, और स्निग्ध या रुक्ष ऐसे केवल दो ही स्पर्श होते हैं । जबकि अनंत परमाणुओं से निष्पन्न परमाणुसमूह में कभी कभी परस्पर विरुद्ध न हो ऐसे चार स्पर्श होते हैं । तो कुछेक में आठो स्पर्श होते हैं । ऊपर बतायी गई आठों प्रकार की वर्गणामें से प्रथम चार प्रकार की वर्गणा के परमाणुसमूह में आठों प्रकार के स्पर्श होते हैं तो शेष चार प्रकार की वर्गणा के परमाणुसमूह में चार प्रकार के स्पर्श होते हैं | ___ बंगाली विज्ञानी डॉ. सत्येन्द्रनाथ बोस का बोस-आइन्स्टाइन स्टॅटिस्टिक्स, डॉ. प्र. चु. वैद्य का किरणोत्सारी तारा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र संबंधित अनुसंधान जैनदर्शन की परमाणु संबंधित कुछेक अवधारणाओं को समर्थन देते हैं । बोस-आइन्स्टाइन स्टॅटिस्टिक्स आदर्श वायु के कण व फोटॉन की समझ देता है । जैनदर्शन अनुसार इसी ब्रह्मांड में आकाश प्रदेश (Space-points) मर्यादित प्रमाण में हैं । जबकि पुद्गल परमाणु की संख्या अनंत है । एक आकाश प्रदेश (Space-point) अर्थात एक स्वतंत्र परमाणु को रहने के लिये आवश्यक अवकाश 1 ऐसे मर्यादित आकाश प्रदेश |में अनंत पुद्गल परमाणु कैसे हो सकते हैं ? एक आकाश प्रदेश में केवल एक ही परमाणु रह सकता है तथापि उसी आकाश प्रदेश में अनंत परमाणुओं के समूह स्वरूप पुद्गल-स्कंध अर्थात् अनंत पुदगल परमाणु भी रह सकते हैं। जैनदर्शन में प्राप्त भौतिकी का यही सिद्धांत आठों प्रकार के कर्म से मुक्त शरीररहित आत्मा पर भी लागू होता है । 21 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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