Book Title: Jain Darshan me Manatavadi Chintan
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 6
________________ 1/4/1 - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्य - जैन दर्शन उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है जैन - 15. नो खलु वयं देवाणुप्पिया अस्थिभावं नत्थि त्ति वयामो, दर्शन एक मानववादी दर्शन है। जिस मानववादी दर्शन का नत्थिभावं अत्थि त्ति वयामो, अम्हे णं देवाणुप्पिया। सव्वं सूत्रपात पाश्चात्य जगत् में प्रोटागोरस ने ई.पू. पाँचवीं-छठी शती अत्थिभावं अत्थि त्ति वयामो, सव्वं नत्थिभावं नत्थि त्ति में मैन इज दि मीजर ऑफ ऑल थिंग्स (Man is the measure of वयामो।। भगवतीसूत्र, 7/10/1 all things) कहकर किया था। वह मानववादी दर्शन हमारी भारतीय 16. सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता, परंपरा के जैन-दर्शन में उसके पूर्व से विद्यमान था, जो हमारे न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिधितव्वा, लिए गौरव का विषय है। न परियावेयव्वा, न उद्देवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे। आचारंगसूत्र सन्दर्भ 17. एवं खलु नाणिरणो सारं जं न हिंसइ किंचण। Humanism in Philosophy is opposed to Naturalism and Abosolutism, it disignates the philos phic attitude which अहिंसा समय चेव एतावंतं वियाणिया ।।सूत्रकृतांग 1/ regards the, interpratation of human experience of the 1/4/10 primary concern of philosophizing, and asserts the adequacy othuman knowledge for the purpose. Ency- 18. करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि clopaedia of Ethics & Religion, Vol-VI, P. 830 जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए, काएणं न The Philosophy of Humanism, P.8 करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणु जाणामि। तस्स Encyclopaedia of Humanities (Philosophy) P. 97 Ibid. भंते। पडिक्कमामि, निंदामि गरिठामि अप्पाणं वोसिरामि। God and Secularity, P. 103-104 आवश्यकसूत्र 1/1 6. Philosopher's and Philosophies, P. 165-166 19. एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं, पक्खीणं 7. शांतिपर्व (महाभारत), 299/20 विव गमणं, तिसियाणं विव सलिलं.खहियाणं विव असणं, 8. किच्चे मणुस्स पटिलाभो। धम्मपद, 182 समुद्दमज्झे व पोयवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं, 9. कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइउ। दुहट्ठियाणं व ओसहिबलं अइवीमज्झे व सत्थगमणं एतो जीवो सोहिमणुप्पत्ता आययंति मणुस्सयं।। उत्तराध्यन, 37 विसिट्ठतरिया अहिंसा जा सा.। प्रश्रव्याकरण 2/1/108 10. दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। नमोत्थुणं अरहंताणं...लोगुत्तमाणं लोकनाहाणं लोगहियाणं गाढा य विवाग कम्मुणो, सयमं गोयम। मापमायए / / वही 10/4 लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं...णमो जिणाणं 11. Outlines of Jainism. P 3-4 जियभयाणं। पहली किरण, साध्वीश्री राजीमतीजी, पृ. 30-31 12. कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। 21. सर्वोदयदर्शन, आमुख पृ. 6 माया मित्ताणि नासेइ, लोमो सव्वविणासणो // 22. दसविधे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा गामधम्मे पागरधम्मे, रट्ठधम्मे, दशवैकालिक - 8/38 पासंडधम्मे, कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, 13. सुवण्ण रुप्पस्स उपव्वया भवे सियाहु केलाससमा असंखया चरित्तधम्मे अस्थिकायधम्मे। स्थानांगसूत्र 10/135 - नरस्स लुद्धस्स्नतेहिं किंचिंइच्छाउ आगाससमा अणन्तिया 23. उत्तराध्ययन, 25/33 उत्तराध्ययन 9/48 24. मरुधरकेसरी अभिनंदनग्रन्थ, जोधपुर 1968, द्वितीय खण्ड, 14. असंविभागी अचियत्ते। वही 17/11 पृ.७७ 20. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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