Book Title: Jain Darshan me Anuman Paribhasha
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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________________ जैन दर्शन प्रत्यक्ष की ही तरह प्रमाण एवं अर्थसिद्धि का सवल साधन माना है। यों तो अनुमान का भारतीय दर्शनों में विस्तृत विवेचन उपलब्ध है और संख्याबद्ध ग्रन्थों का निर्माण हुआ है, किन्तु यहाँ हम उसके मात्र स्वरूप पर विमर्श प्रस्तुत करेंगे। अनुमान परिभाषा अनुमान शब्द की निरुक्ति अनु+मान इन दो शब्दों से अनुमान शब्द निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है पश्चाद्वर्ती ज्ञान, और ऐसा ज्ञान ही अनुमान है। डॉ. दरबारी लाल कोठिया प्रश्न उठता है कि प्रत्यक्ष को छोड़कर शेष सभी (स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, चिन्ता आदि) ज्ञान प्रत्यक्ष के पश्चात् ही होते हैं। ऐसी स्थिति में ये सव ज्ञान भी अनुमान कहे जायेंगे । अतः अनुमान से पूर्व वह कौनसा ज्ञान विवक्षित है, जिसके पश्चात् होने वाले ज्ञान को भारतीय दर्शनों में प्रत्यक्ष की तरह अनुमान को अनुमान कहा है ? भी अर्थसिद्धि का महत्वपूर्ण साधन माना गया है। सम्बद्ध और वर्तमान, आसन्न और स्थूल पदार्थों का इसका उत्तर यह है कि अनुमान से अव्यवहित ज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष से किया जा सकता है। पर पूर्ववर्ती वह ज्ञान विशेष है, जिसके अव्यवहित उत्तरअसम्बद्ध और अवर्तमान, अतीत-अनागत तथा दूर . काल में अनुमान उत्पन्न होता है । वह ज्ञान-विशेष है, और सूक्ष्म अर्थों का ज्ञान उससे सम्भव नहीं है, क्योंकि व्याप्ति-निर्णय (तर्क-ऊहा-चिन्ता) । उसके अनन्तर उक्त प्रकार के पदार्थों को जानने की क्षमता इन्द्रियों में नियम से अनुमान होता है। लिंगदर्शन, व्याप्तिस्मरण नहीं है। अतः ऐसे पदार्थों का ज्ञान अनुमान द्वारा और पक्षधमंताज्ञान इनमें से कोई भी अनुमान का किया जाता है। इसे चार्वाक दर्शन को छोड़कर, शेष अव्यवहित पूर्ववर्ती नहीं है । लिंगदर्शन व्याप्तिस्मरण से, सभी भारतीय दर्शनों ने स्वीकार किया है और उसे व्याप्तिस्मरण पक्षधर्मताज्ञान से और पक्षधर्मताज्ञान 1. व्याप्ति विशिष्टपक्षधर्मताज्ञान जन्म ज्ञान मनुमितिः । तत्करणमनुमानम् । -- गंगेश उपाध्याय, तत्त्व चि., अनु., जागदीशी, पृ. 13 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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