Book Title: Jain Darshan me Anekant Author(s): Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 4
________________ "प्रश्नवशादेकत्र वस्तूनि अविरोधेन विधि प्रति- के अभिप्राय के अनुसार एक धर्म प्रमुख होता है तब षेध कल्पना सप्तभंगी।" दूसरा गौण हो जाता है। इसमें संशय और मिथ्या(१) स्यादस्ति,(२) स्यादनास्ति, (3) स्यादस्ति- ज्ञानों की कल्पना भी नहीं है / अन्य मतावलम्बियों * नास्ति, (4) स्याद् अवक्तव्य, (5) स्यादस्ति अव ने भी अनेकान्तवाद को स्वीकार किया है / अध्यात्म क्तव्य, (6) स्यान्नास्ति अवक्तव्य, (7) स्यादस्ति उपनिषद में भी कहा हैनास्तिअवक्तव्य / ये सातों भंग विधि प्रतिषेध भिन्नापेक्षायथैकत्र, पितृपुत्रादि कल्पना / TH कल्पना के द्वारा विरोध रहित वस्तु में एकत्र रहते नित्यानित्याद्यनेकान्त, स्तथैव न विरोत्स्यते / / है और प्रश्न करने पर जाने जाते हैं / वस्तु स्वद्रव्य, वैशेषिक दर्शन में कहा है-सच्चासत् / स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव की अपेक्षा अस्तिरूप यच्चान्यदसदस्तदसत / है तो परद्रव्य, परक्षत्र, परकाल और परभाव को इस प्रकार अन्य दर्शनों में भी अनेकान्त की अपेक्षा नास्तिरूप है। उक्त सात भंगों में 'स्यात्' सिद्धि मिलती है। हमको अनेकान्तदृष्टि द्वारा ही शब्द जागरूक प्रहरी बना हुआ है जो एक धर्म से वस्तु को ग्रहण करना चाहिए। एकान्तदृष्टि वस्तु दूसरे धर्म को मिलने नहीं देता, वह विवक्षित सभी तत्व का ज्ञान कराने में असमर्थ है। अनेकान्त धर्मों के अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा करता है / इस कल्याणकारी है, और यही सर्व धर्म समभाव में स्यात् का अर्थ शायद या सम्भावना नहीं है / वक्ता कारणरूप सिद्ध हो सकता है / __(शेष्ठ पृष्ठ 467 का) है, उसका सही मूल्यांकन करना बहुत ही कठिन है देह को प्रस्तुत किया जाय / जो नारी माता-भगिनीसामाजिक कदर्थनाओं के यन्त्र में पिसी जाकर भी पुत्रो जैसे गरिमामय पद पर प्रतिष्ठित रही, जो इक्षु की तरह वह सदा मधुर माधुर्य लुटाती रही सत्य और शील की साक्षात्मूर्ति रही, उनको चन्द चांदी के टुकड़ों के लोभ में फंसे हुए इन्सान जिस नारियो ! युग की पुकार है / तुम्हें जागना है। रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, वह हमारी संस्कृति के वासना के दलदल से तुम्हें मुक्त होना है। तुम्हारा साथ धोखा है / भारतीय संस्कृति में नारी नारागौरव इसमें नहीं कि विज्ञापनों में तुम्हारे अर्धनग्न यणी के रूप में प्रतिष्ठित रही है। 0000 MarPAGxe सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 501 0 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jairr Education Internationar S a drinatandDarsanelivonlyaPage Navigation
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