Book Title: Jain Darshan ka Parmanuvad Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 8
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - जैन दर्शन 49. द्रष्टव्य-तत्त्वार्थसूत्र, 5/33-36 - उपाध्याय बलदेव-भारतीय दर्शन, पृ. 244 50. पूज्यपादाचार्य-सर्वार्थसिद्धि, पृ. 221-229 39. प्रो. हरेन्द्रप्रसाद सिन्हा-भा.द. रूपरेखा, पृ. 268 51. डा. मोहनलाल मेहता-जैन दर्शन, पृ. 185-186 40. डब्लू. टी. स्टेटस, ग्रीक फिलोसफी, पृ. 88-80 52. बन्धेऽधिको पारिणामिकौ च। तत्त्वार्थसूत्र 5/37 41. वीरसेन-धवला, पृ. 13, खण्ड 5, भाग 3, सूत्र 18, पृ. 18 53. बन्धे समाधिको पारिणामिकौ, 5/36 42. द्रष्टव्य पूज्यपाद-सर्वार्थसिद्धि, 5/11 बंधे सति समगुणस्य समगुणः पारिणामिको भवति, अधिक४३. वीरसेन धवला, पृ. 13, खण्ड 5, पु. 3, सूत्र 32, पृ. 23 गुणो हीनस्येति। वही 44. गोम्मटसार जीवप्रदीपका टीका, भा. 564, पृ. 1009 54. भट्ट अकलंक देव-तत्त्वार्थवार्तिक, 5/36/4-5 45. पंचास्तिकाय तत्त्वप्रदीपिका टीका गाथा 70, पृ. 137 ___ * लेखक के दिगंबर परंपरा से संबद्ध होने के कारण उस 46. सद्दोखधंप्पभवो खंधो परमाणुसंगसंघादो पुढेसु तेसु जायादि परंपरा के ग्रंथों के आधार पर ही परमाणुवाद का विवरण सद्दो उप्पादगो णियदो। पंचास्तिकाय, गाथा-७९ दिया। श्वेताम्बर आगमों एवं आगमेतर साहित्य में भी 47. पदमप्रभ, नियमसार, तारर्ण्यवृत्ति, गा. 25 परमाणुवाद का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। 48. भगवतीसूत्र, 20/5/12 - सम्पादक ఆరురురురురురురురురురురురురురురువారసాదరంగురువారం సాగుతారు Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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