Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Indra Chandra Shastri
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 6
________________ ३६२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय संग्रह का क्षेत्र अपेक्षाकृत न्यूनाधिक होता है. जैसे मनुष्यत्व का क्षेत्र ब्राह्मत्व की अपेक्षा विस्तृत है और जीवत्व की अपेक्षा संकुचित. व्यवहार नय—साधारण व्यवहार के लिए किया जाने वाला भेद इस नय को प्रकट करता है. जैसे मनुष्य का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि जातियों में विभाजन करना. संग्रह में दृष्टि अभेद की ओर जाती है और यहां भेद की ओर. ऋजुसूत्रनय-ऋजु अर्थात् वर्तमान अवस्था को लेकर चलने वाला नय. ऋजुसूत्र की दृष्टि में जिस व्यक्ति का मुख्य व्यवसाय अध्यापन है उसे अध्यापक कहा जा सकता है. जिस समय वह सो रहा है या भोजन कर रहा है उस समय भी अध्यापक है. शब्दनय-ऋजुसूत्र केवल वर्तमानकाल पर दृष्टि रखता है. शब्दनय लिंग, कारक, संख्या आदि का भेद होने पर वस्तु में परस्पर भेद मानता है. उदाहरण के रूप में नगर और पुरी शब्द को लिया जा सकता हे. शब्द नय की दृष्टि से दोनों में परस्पर भेद है. समभिरूढ़नय-यह नय समानार्थक शब्दों को स्वीकार नहीं करता अर्थात् जहां एक ही अर्थ को प्रकट करने वाले कई शब्द हैं उनके अर्थ में भी भेद मानता है. एवंभूतनय-इस नय की दृष्टि क्रिया पर रहती है. व्यक्ति विशेष को अध्यापक तभी कहा जायगा जब वह अध्यापन कर रहा है, सोते या भोजन करते समय नहीं. हमारा साधारण व्यवहार ऋजुसूत्र नय को लेकर चलता है. ७ में से प्रथम ३ अर्थनय माने जाते हैं और अंतिम ४ शब्द नय. नयों का विभाजन द्रव्याथिक और पर्यायाथिक के रूप में भी किया जाता है. द्रव्याथिक में मुख्य दृष्टि अभेद की ओर रहती है और पर्यायाथिक में भेद की ओर. प्रथम चार नय द्रव्याथिक माने जाते हैं और अन्तिम ३ पर्यायाथिक. चार निक्षेप निक्षेप शब्द का अर्थ है रखना या विभाजन करना. शब्द का अर्थ करते समय विभाजन की चार दृष्टियां हैं और हमें यह सोचकर चलना पड़ता है कि प्रस्तुत प्रसंग में किस दृष्टि को लिया जा रहा है ? । (१) नाम निक्षेप-हम किसी व्यक्ति का नाम राजा रख लेते हैं. भिखारी होने पर भी वह राजा कहा जाता है और इस कथन को असत्य नहीं माना जाता. यह नाम निक्षेप अर्थात् नाम की दृष्टि से शब्द का प्रयोग है. (२) स्थापना निक्षेप-हम मंदिर में रखी हुई मूर्ति को भगवान् कहते हैं. शतरंज के मोहरों को हाथी घोड़े कहते हैं. यह सब स्थापना निक्षेप है. अर्थात् वहां उन्हें उस रूप में मान लिया जाता है. नाम निक्षेप में केवल उस नाम से पुकारा जोता है, वैसा व्यवहार नहीं किया जाता. स्थापना निक्षेप में पुकारने के साथ व्यवहार भी होता है. प्रतीकवाद स्थापना निक्षेप का एक रूप है. (३) द्रव्य निक्षेप-भावी या भूत पर्याय की दृष्टि से किसी वस्तु को उस नाम से पुकारना. जैसे युवराज को राजा कहना या भूतपूर्व अधिकारी को उस पद के नाम से पुकारना. (४) भावनिक्षेप—गुण या वर्तमान अवस्था के आधार पर वस्तु को उस नाम से पुकारना. जैसे सिंहासन पर बैठे हुए व्यक्ति को राजा कहना या पदाधिकारी को उसके कार्य काल में उस नाम से पुकारना. तत्त्वमीमांसा हनदर्शन शिव को प्रयासमा चरत्वों कल्मायक सिकायत करता है। मप्र बिभाजन और जाद और अपवित्र कस्ता जैनदर्शन विश्व को ६ द्रव्य या ७ तत्त्वों के रूप में विभक्त करता है. प्रथम विभाजन ज्ञेय जगत् को उपस्थित करता है और द्वितीय में मुख्य दृष्टि आचार या आत्मविकास की है. ७ तत्त्वों में प्रथम दो अर्थात् जीव और अजीव द्रव्यरूप Jain ugron In tional ate Personal www.rinetary.org

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