Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 26
________________ श्री चन्द्रप्रभु भगवान जी चालीसा श्री चन्द्रप्रभु वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणी को ध्याय ॥ पढने का साहस करूं, चालीसा सिर नाय ॥ देहरे के श्री चन्द को, पूजों मन वच काय ॥ ऋद्धि सिद्धि मंगल करे, विघन दर हो जाय । जय श्री चंद्र दया के सागर, देहरे वाले ज्ञान उजागर ॥ नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी ॥ देवो के तुम देव कहावो, कष्ट भक्त के दूर हटावो ॥ समन्तभद्र मुनिवर ने धयाया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया ॥ जग के सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थंकर कहलावो ॥ महासेन के राजदुलारे, मात सुलक्षना के हो प्यारे ॥ चन्द्रपुरी नगरी अति नामी, जन्म लिया चन्द्र प्रभु स्वामी ॥ पौष वदी ग्यारस 'जन्मे, नर नारी हर्षे तन मन || काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी ।। फाल्गुन वदी सप्तमी भाई, केवल ज्ञान हुआ सुखदाई ॥ फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहाँ से ॥ लोभ मोह और छोडी माया, तुमने मान कषाय नसाया ॥ रागी नही, नही तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी ।। 26

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