Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 37
________________ श्री विमलनाथ भगवान जी श्री विमलनाथ चालीसा सिद्ध अनन्तानन्त नमन कर, सरस्वती को मन में ध्याय ॥ विमलप्रभु क्री विमल भक्ति कर, चरण कमल में शीश नवाय ।। जय श्री विमलनाथ विमलेश, आठों कर्म किए निःशेष ॥ कृतवर्मा के राजदुलारे, रानी जयश्यामा के प्यारे ॥ मंगलीक शुभ सपने सारे, जगजननी ने देखे न्यारे ॥ शुक्ल चतुर्थी माघ मास की, जन्म जयन्ती विमलनाथ की ॥ जन्योत्सव देवों ने मनाया, विमलप्रभु शुभ नाम धराया ॥ मेरु पर अभिषेक कराया, गन्धोंदक श्रद्धा से लगाया ॥ वस्त्राभूषण दिव्य पहनाकर, मात-पिता को सौंपा आकर ॥ साठ लाख वर्षायु प्रभु की, अवगाहना थी साठ धनुष की ॥ कंचन जैसी छवि प्रभु - तन की, महिमा कैसे गाऊँ मैं उनकी ॥ बचपन बीता, यौवन आया, पिता ने राजतिलक करवाया ।। चयन किया सुन्दर वधुओं का, आयोजन किया शुभ विवाह का ॥ एक दिन देखी ओस घास पर, हिमकण देखें नयन प्रीतिभर ॥ हुआ संसर्ग सूर्य रश्मि से, लुप्त हुए सब मोती जैसे ॥ हो विश्वास प्रभु को कैसे, खड़े रहे वे चित्रलिखित से ॥ “ क्षणभंगुर है ये संसार, एक धर्म ही है बस सार ॥ 37

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