Book Title: Jain Bhakti Sahitya Author(s): Mahendra Raijada Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 7
________________ जैन भक्ति साहित्य है। जैन भक्त कवियों ने दाम्पत्य रति का सम्बन्ध भौतिक क्षेत्र से न जोड़कर आध्यात्मिकता से जोड़ा है। साथ ही वीतरागी भक्ति से सम्पूर्ण जैन भक्ति साहित्य परिपूर्ण है। स्वयंभू का 'पउमचरिउ' वि० सं० नवमी शती में रचा गया अपभ्रंश भाषा का ग्रन्थ है। इसी प्रकार कवि पुष्पदन्त का ‘णायकुमारचरिउ' वि० सं० 1026 में रची गयी अपभ्रंश भाषा की कृति है, जिसे पुष्पदन्त ने देशभाषा की संज्ञा दी है। श्रीचन्द ने जैन भक्ति सम्बन्धी कथाओं को लेकर देशभाषा में 'कथाकोष' नामक ग्रन्थ की रचना की। तेरहवीं शती में विनयचन्द सूरि ने 'नेमिनाथ चउपई' ग्रन्थ का प्रणयन किया। शालिनद्रसूरि का बाहुबलिरास' (सन् 1184) एक उच्च कोटि का ग्रन्थ है। महेन्द्रसूरि के शिष्य धर्मसूरि ने वि० सं० 1266 में 'जम्बूस्वामीचरित', 'स्थूलचन्द्ररास' तथा 'सुभद्रासती चतुष्पदिका' ग्रन्थों की रचना की। इनके अतिरिक्त ईश्वर सूरि, (सं० 1561), गुणसागर (सं० 1626), त्रिभुवनचन्द्र (सं० 1652), सुन्दरदास (सं० 1675), कनक-कीर्ति, जिनहर्ष (सं० 1713), बिहारीदास (सं० 1758) तया पं० दौलतराम (सं० 1777) आदि जैन भक्त साहित्यकारों के नाम भी उल्लेखनीय हैं। जैन भक्ति साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जो कि अनेक जैन भक्त कवियों द्वारा समय-समय पर प्राकृत, अपभ्रंश, देशभाषा तथा हिन्दीभाषा में रचा गया है। इस लेख में समूचे जैन भक्ति साहित्य का विस्तृत विवेचन तो सम्भव नहीं था, अतः उसकी मुख्य-मुख्य प्रवृत्तियाँ एवं तत्सम्बन्धी विशेषकर हिन्दी की प्रमुख कृतियों तथा कृतिकारों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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