Book Title: Jain Agamo ke Bhashya aur Bhashyakar Author(s): Pushkar Muni Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 8
________________ ४५० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 ०००००००००००० बह्वागम हैं, सूत्रार्थ विशारद हैं, धीर हैं, श्रुत निवर्ष हैं, महाजन हैं वे ही आचार्य आदि पदवियाँ प्राप्त कर सकते हैं। साधुओं के विहार सम्बन्धी नियमों पर चिन्तन करते हुए कहा है-आचार्य को कितने सन्तों के साथ रहना चाहिए । वर्षाकाल में निम्नलिखित स्थान श्रेष्ठ बताये गये हैं-जहाँ अधिक कीचड़ न हो, द्वीन्द्रियादि जीवों की बहुलता न हो, प्रासुक भूमि हो, रहने योग्य दो तीन बस्तियाँ हों, गोरस की प्रचुरता हो, बहुत लोग रहते हों, कोई वैद्य हो, औषधियाँ प्राप्त होती हों, धान्य की प्रचुरता हो, राजा सम्यक् प्रकार से प्रजा को पालता हो, पाखण्डी साधु कम रहते हों, भिक्षा सुलभ हो और स्वाध्याय में कोई विघ्न न हो। जहाँ पर कुत्ते अधिक हों वहाँ पर साधु को विहार नहीं करना चाहिए। जाति-जंगित, कर्म-जंगित, और शिल्प-जंगित ये तीन प्रकार के हीन लोग बताये हैं। जाति-जंगितों में पाण, डोंब, किणिक और श्वपच तथा कर्म-जंगितों में पोषक, संवर-शोधक, नट, लेख, व्याध, मछुए, रजक, और वागुरिक शिल्प-जंगितों में पट्टकार और नापितों का उल्लेख है । __आर्यरक्षित, आर्य कालक, राजा सातवाहन, प्रद्योत, मुरुण्ड, चाणक्य, चिलात पुत्र, अवन्ति सुकुमाल, रोहिणेय आदि की कथाएँ भी इसमें आई हैं। आर्य समुद्र, आर्यमगु का भी वर्णन है । पाँच प्रकार के व्यवहार, बालदीक्षा की विधि, दस प्रकार की सेना आदि पर भी विवेचन किया है। ओघ नियुक्ति-लघु भाष्य व्यवहार भाष्य के समान ओधनियुक्ति लधुभाष्य के कर्ता का नाम नहीं मिलता है । ओपनियुक्ति लघुमाष्य की ३२२ गाथाएँ हैं । ओघ, पिण्ड, व्रत, श्रमणधर्म, संयम, वैयावृत्य, गुप्ति, तप, समिति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रिय निरोध, प्रतिलेखना, अभिग्रह अनुयोग, कायोत्सर्ग, औपघातिक, उपकरण आदि विषयों पर संक्षेप में विवेचन है। इसके वृहद्भाष्य में विस्तार से विवेचन है। ओघनियुक्ति भाष्य ओघनियुक्ति वृहद्भाष्य की एक हस्तलिखित प्रति मुनि श्री पुण्यविजयजीय के संग्रह में थी, जिसमें २५१७ गाथाएँ थीं। सभी गाथाएँ भाष्य की नहीं किन्तु उसमें नियुक्ति की गाथाएँ भी सम्मिलित हैं । नियुक्ति की गाथाओं के विवेचन के रूप में भाष्य का निर्माण हुआ है । भाष्य में कहीं पर भी भाष्यकार के नाम का उल्लेख नहीं हुआ है। पिण्डनियुक्ति भाष्य ___ पिण्डनियुक्ति भाष्य के रचयिता का भी नाम प्राप्त नहीं होता है । इसमें ४६ गाथाएँ हैं । 'गौण' शब्द की व्युत्पत्ति, पिण्ड का स्वरूप, लौकिक और सामयिक की तुलना, सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना के रूप में पिण्ड स्थापना के दो भेद हैं। पिण्ड निक्षेप और वातकाय, आधाकर्म का स्वरूप, अधःकर्मता हेतु विभागौद्देशिक के भेद, मिश्रजात का स्वरूप, स्वस्थान के स्थान स्वस्थान, भाजनस्वस्थान, आदि भेद, सूक्ष्म प्राभृतिका के दो भेद-अपसर्पण और उत्सर्पण । विशोधि और अविशोधि की कोटियां । अदृश्य होने का चूर्ण और दो क्षुल्लक भिक्ष ओं की कथा है। उत्तराध्ययन भाष्य उत्तराध्ययन भाष्य स्वतन्त्र रूप से नहीं मिलता । शान्तिसूरि की प्राकृत टीका में भाष्य की गाथाएं प्राप्त होती हैं । वे केवल ४५ हैं । ज्ञात होता है अन्य भाष्यों की गाथाओं के समान प्रस्तुत भाष्य की गाथाएँ भी नियुक्ति के साथ मिल गई हैं। इनमें बोटिक की उत्पत्ति, पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक आदि के स्वरूप का विश्लेषण किया गया है। दशवकालिक भाष्य दशर्वकालिक भाष्य की ६३ गाथाएँ हैं, जिसका उल्लेख हरिमद्रिया वृत्ति में है । हरिभद्र ने जिन गाथाओं को 2990 000 Jain Education International For Private & Personal www.jainelibrary.orgPage Navigation
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