Book Title: Jain Agamo Me Sukshm Sharir Ki Avdharna Aur Adhunik Vigyan
Author(s): Mahavir Raj Gelada
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 1
________________ जैन आगमों में सूक्ष्म शरीर की अवधारणा और आधुनिक विज्ञान डॉ. महावीर राज गेलड़ा जैन आगम साहित्य में सूक्ष्म शब्द का प्रयोग अनेक पारिभाषिक शब्दों के साथ हुआ है। सूक्ष्म जीव,' सूक्ष्म पुद्गल, सूक्ष्म शरीर, सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाती ध्यान, सूक्ष्म सांपराय गुणस्थान, सूक्ष्म सांपराय चारित्र आदि का प्रमुख रूप से उल्लेख हुआ है। सामान्यतः एक स्थूल की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को सूक्ष्म और एक सूक्ष्म वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को स्थूल कहा जाता है। जैन आगमों में पुद्गल के स्थूल और सूक्ष्म के भेद में परमाणु को अन्तिम सूक्ष्म कहा है। स्थानांग के जीव निकाय पद में जीव को दो प्रकार का कहा है-सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म जीव अतीन्द्रिय होते हैं तथा उन जीवों के सूक्ष्म नामकर्म का उदय होता है। कई सूक्ष्म जीव ऐसे भी हैं जो एक शरीर में एक साथ अनेक रहते हैं। सूक्ष्म जीव समूचे लोक में व्याप्त हैं और बादर जीव लोक के एक भाग में रहते हैं। विश्व स्थिति का रहस्य प्रकट करने में तथा अतीन्द्रिय विषयों के निर्णय में जैनों ने सूक्ष्म जीव के अतिरिक्त सूक्ष्म पुद्गल तथा सूक्ष्म शरीर का गहरा एवं वैज्ञानिक विवेचन किया है। सूक्ष्म शरीर, सूक्ष्म पुद्गल से निर्मित है । अतः सूक्ष्म पुद्गल के व्यवहार की चर्चा, आधुनिक विज्ञान के सन्दर्भ में करना न्यायसंगत होगा, क्योंकि प्रायः एक शताब्दी से वैज्ञानिक भी सूक्ष्म पदार्थ के अध्ययन में गहरी रुचि ले रहे हैं। ___वैज्ञानिकों के अनुसार आकाश में ऐसा कोई स्थान खाली नहीं है, जहाँ पदार्थ न हो, क्योंकि ऊर्जा पदार्थ से भिन्न नहीं है। विश्व के दूरतम छोर तक भी तारों का प्रकाश पहुँचता है, गुरुत्वाकर्षण का बल रहता है। जैन दर्शन के अनुसार भी इस लोक में स्थूल तत्त्व की अपेक्षा, सूक्ष्म तत्त्व का बाहुल्य है। सूक्ष्म जीव और सूक्ष्म पुद्गल लोक के समस्त आकाश प्रदेशों में भरे हैं।'१ विज्ञान सूक्ष्म पदार्थ के क्षेत्र में अभी अनुसंधानरत है तथा स्थूल और सूक्ष्म के व्यवहार की भिन्नता पर, निर्णायक स्थिति पर नहीं पहुंचा है। वैज्ञानिक धारणाओं के अनुसार संहति को जड़ का मौलिक गुण माना गया है । पदार्थ का सूक्ष्म रूप भी संहति से भिन्न नहीं है । जैन दर्शन सूक्ष्म पुद्गल में संहति परिसंवाद-४ १२a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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