Book Title: Jain Agamo Me Sukshm Sharir Ki Avdharna Aur Adhunik Vigyan
Author(s): Mahavir Raj Gelada
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 6
________________ 190 जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययने गुण से ही गतिमान् हो जाते हैं। स्थूल पुद्गल की गति के लिए धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय का होना अनिवार्य नहीं है। सम्भव यही है कि सूक्ष्म पुद्गल तथा सूक्ष्म शरीर की गति आकाश तथा काल निरपेक्ष होने से वे अप्रतिघात करते हुए गमन कर लेते हैं और लोकान्त तक भी पहुँच जाते हैं। इस प्रकार सूक्ष्म शरीर की अवधारणा से जैन आगमों में जीव तथा पुद्गल दोनों के सूक्ष्म स्वरूप को निश्चित किया गया है / संदर्भ 1. प्रज्ञापना पद 1 2. अनुयोगहार ( प्रमाणद्वार ), ठाणं 2 / 2 3. तत्त्वार्थसूत्र 2 / 38 4. तत्त्वार्थसूत्र 9 / 41 5. जैन सिद्धान्त दीपिका 8123 6. जैन सिद्धान्त दीपिका 8 / 14 7. तत्त्वार्थसत्र 5 / 24 8. जैन सिद्धान्त दीपिका 1114 9. ठाणं 2 / 55 10. तत्त्वार्थसूत्र 2138 11. उत्तराध्ययन 26 / 72 12. भगवती 2 / 4, प्रज्ञापना 289 13. तत्त्वार्थराजवार्तिक 5 / 34, 35, 36 14. तत्त्वार्थसूत्र 2 / 37 15. जैन सिद्धान्त दीपिका 8 / 26 16. तत्त्वार्थसूत्र 2 / 38 17. ठाणे 2 / 181 18. भगवतीसूत्र 16 / 116 19. भगवतीसूत्र 11 / 128 20. ठाणं 2 / 1 गवर्नमेण्ट कालेज, भीलवाड़ा, राजस्थान परिसंवाद 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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