Book Title: Jain Agam Auppatik Sutra ka Sanskrutik Adhyayan Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 1
________________ जैन आगम-औपपातिक सूत्र का सांस्कृतिक अध्ययन भारतवर्ष संतों की साधना भूमि है । ऋषियों की चिंतन भूमि है । वीरों एवं सतियों का जीवनोत्सर्ग तीर्थ है । अनेक महापुरुषों ने समय-समय पर इस पवित्र भूमि में जन्म ले कर अपनी आत्मा का चरम आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष किया, उन्नति की ओर जनता को सत्पथ प्रदर्शित किया। प्राचीनकाल में अध्ययन अध्यापन प्रायः मौखिक ही अधिक हया करता था इसलिए बहत से महापुरुषों की अनुभूतिरूप वाणी आज हमें प्राप्त नहीं है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारतवर्ष ने जो उन्नति की उसका, भी लेखा-जोखा बतलाने वाला प्राचीन साहित्य अधिकांश लुप्त हो चुका है। प्राप्त प्राचीन ग्रन्थों में उन ग्रंथों से पूर्ववर्ती जिन ग्रन्थकारों व पुस्तकों का नाम उल्लिखित मिलता है उनमें से अधिकांश ग्रन्थ अब प्राप्त नहीं हैं। इसी से हम अपनी प्राचीन साहित्य-संपदा को कितना अधिक खो चुके हैं इसका सहज ही पता चलता है। लेखन-कला का समुचित विकास होने के बाद भी बहत बड़ा साहित्य नष्ट हो चुका है। भारत की दो प्राचीन संस्कृतियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-एक वैदिक दूसरी श्रमण । वैदिक संस्कृति सम्बन्धी प्राचीन साहित्य वेद आदि उपलब्ध हैं पर श्रमण संस्कृति का इतना प्राचीन साहित्य उपलब्ध नहीं है; जैसा कि बहुत से विद्वानों का मत है कि यदि वैदिक-आर्य बाहर कहीं से प्राकर भारत में बसे हैं तो उससे पहले भारत में अनार्य एवं श्रमण संस्कृति के अस्तित्व का पता चलता है। श्रमण संस्कृति में सम्भव है पहले और भी कई धाराए हों, पर वर्तमान में बौद्ध और जैन ये दो धाराएं ही प्रसिद्ध हैं । इनमें से बौद्ध धर्म तो गौतमबुद्ध के द्वारा अब से २५०० वर्ष पूर्व ही प्रवर्तित हुआ पर जैन धर्म के अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर बुद्ध के समकालीन थे, अत : प्राचीन है । उससे पूर्व २३ तीर्थङ्कर और हो चुके हैं जिनमें से पार्श्वनाथ को तो सभी विद्वान ऐतिहासिक महापुरुष मानते हैं और उनके चातुर्याम धर्म का बौद्ध ग्रन्थों में निग्रन्थ धर्म के रूप में उल्लेख है। पार्श्वनाथ के पूर्ववर्ती भगवान् नेमिनाथ-पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे । अतः उन्हें भी कई विद्वान् ऐतिहासिक मानने लगे हैं। भगवान् ऋषभदेव, जो जैन धर्म के अनुसार इस अवसर्पणी काल के प्रथम तीर्थङ्कर थे, उनके बड़े पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम 'भारत' प्रसिद्ध आ और जिनकी बड़ी पुत्री ब्राह्मी के नाम से भारतवर्ष की प्राचीन लिपि का नाम 'ब्राह्मी' पड़ा। उन ऋषभदेव को भागवत पुराण में एक अवतारी पुरुष के रूप में मान्य किया गया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त ध्यानस्थ नग्नमूर्तियां जैन धर्म से सम्बन्धित होना अधिक संभव है। जैन धर्म के प्रचारक--तीर्थङ्कर सभी इसी भारत भूमि में हए और उनका जन्म, प्रव्रज्या, केवलज्ञान प्राप्ति और मोक्ष यावत् संपूर्ण जीवन भारत में ही बीता और विशेषकर उत्तर-पूर्व, प्रदेश में । इससे जैन धर्म भारत का बहुत प्राचीन धर्म सिद्ध होता है। भगवान् महावीर के पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों की वाणी आज उपलब्ध नहीं है। पर कई विद्वानों का मत है कि भगवान महावीर के समय जो चौदह पूर्वो का ज्ञान था वह संभवत: भगवान् पार्श्वनाथ की ही वाणी हो । भगवान् महावीर ने १२।। वर्षों तक कठोर साधना करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया और तीस वर्ष तक सर्वज्ञ के रूप में सर्वत्र विचरण करते रहे । उन्होंने समय-समय, एवं स्थान-स्थान पर भव्य जीवों के कल्याण के लिये जो कुछ उपदेश दिया वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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