Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granth Karyalay

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Page 14
________________ परीषहाद्यविज्ञानादास्रवस्य निरोधिनी। जायतेऽध्यात्मयोगेन, कर्मणामाशु निर्जरा ।।२४।। अध्यात्म योग में लीन व्यक्ति को परिषह नहीं झेलने पड़ते। फलस्वरूप उसे नये कर्मों का बन्ध नहीं होता और उसके पुराने कर्मों की निर्जरा भी शीघ्र हो जाती है। कटस्य कर्ताहमिति, सम्बन्धः स्याद् द्वयोर्द्वयोः । ध्यानं ध्येयं यदात्मैव, सम्बन्धः कीदृशस्तदाः ।।२५।। मैं चटाई बनानेवाला हूँ - इस प्रकार दो पदार्थों में कर्ता-कर्म का एक सम्बन्ध होता है। लेकिन जहाँ आत्मा ही ध्यान और ध्येय हो वहाँ कैसा, क्या सम्बन्ध ? । बध्यते मुच्यते जीवः, सममो निर्ममः क्रमात् । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन, निर्ममत्वं विचिन्तयेत्।।२६।। ममत्व जीव को कर्मों के बन्धन में बाँधता है। गैरममत्व (मेरेपन का अभाव, अममत्व) उसे उनसे मुक्त करता है। इसलिए हमारा हर क़दम गैरममत्व की दिशा में ही उठना चाहिए। एकोऽहं निर्ममः शुद्धो, ज्ञानी योगीन्द्रगोचरः । बाह्याः संयोगजा भावा, मत्तः सर्वेऽपि सर्वथा ।।२७।। मैं (आत्मा) एक हूँ। मेरेपन से रहित हूँ। शुद्ध और ज्ञानी हूँ। योगी ही मुझे जान सकते हैं। संयोगों से उत्पन्न होनेवाले विभिन्न सम्बन्ध मेरी दुनिया से बाहर हैं।

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