Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Jaykumar Jalaj, Manish Modi
Publisher: Hindi Granth Karyalay

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Page 17
________________ अभवच्चित्तविक्षेपः, एकान्ते तत्त्वसंस्थितः । अभ्यस्येदभियोगेन, योगी तत्त्वं निजात्मनः ।।३६।। योगी को चाहिए कि चित्त में क्षोभ न रखे, तत्त्वचिन्तन में एकाग्र रहे, आलस्य का त्याग करे और एकान्त में अपने आत्मतत्त्व का ध्यान करता रहे। यथा यथा समायाति, संवित्तौ तत्त्वमुत्तमम्।। तथा तथा न रोचन्ते, विषयाः सुलभा अपि।।३७।। ज्यों ज्यों आत्मज्ञान में श्रेष्ठता बढ़ती है त्यों त्यों भोगविलास, भले ही वे एकदम सुलभ हों, अच्छे नहीं लगते। यथा यथा न रोचन्ते, विषयाः सुलभा अपि। तथा तथा समायाति, संवित्तौ तत्त्वमुत्तमम्।।३८|| ज्यों ज्यों भोगविलास अच्छे नहीं लगते त्यों त्यों आत्मज्ञान में श्रेष्ठता बढ़ती है। निशामयति निश्शेषमिन्द्रजालोपमं जगत्। स्पृहयत्यात्मलाभाय, गत्वान्यत्रानुतप्यते।।३९।। जब सारा संसार इन्द्रजाल की तरह (निःसार) दिखाई देने लगता है तब आत्मस्वरूप को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वैसे में मन अगर किसी दूसरे विषय की ओर जाता है तो अनुताप होता है।

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