Book Title: Iryasamiti aur Padyatra
Author(s): Sanjavi Prachandiya
Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf

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Page 3
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ औषधि आदि में भी अनेक दोष निहित होते हैं) या संध्या के पूर्व उन्हें अपने स्थान पर पहुँचना आवश्यक हो आदि। इसी प्रकार, आकाश मार्ग का उपयोग भी निषिद्ध माना गया है। साधु को मन, वचन और कर्म तीनों से शुद्ध होकर भाव मार्ग से लक्ष्य प्राप्त्यर्थ यात्रा करनी चाहिए। यही चारों आलम्बन ईर्यासमिति के घटक भी कहे जा सकते हैं। पद-यात्रा से तात्पर्य पैदल मार्गी होना है / पद-यात्रा का जैन धर्म में जो प्रावधान निहित किया गया है उसमें ईर्यासमिति पूर्णरूपेण विदोहित होती है। "मग्गुज्जीवय ओगालंबण सुद्धीहि इरिय दो पुणिणो। सुत्ताणुवीचि भणिया इरियासमिदी पवयण म्मि / " अर्थात् मार्ग, नेत्र, सूर्य का प्रकाश ज्ञानादि में यत्न, देवता आदि आलम्बन-इनकी शुद्धता से तथा प्रायश्चित्तादि सूत्रों के अनुसार गमन करना ही ईर्यासमिति के अनुसार पद-यात्रा कहलाती है। __ लोक दृष्टि और पर-यात्रा आज हम प्रगतिशील युग में विचरण कर रहे हैं जहाँ व्यक्ति कार, बस या रेल से ही यात्रा नहीं करता अपितु उसकी यात्रा आकाश मार्गीय यान और वायुयान से भी होती है। तब फिर ऐसी विराट और बृहद् यात्रा में सावधानी का सर्वव्यापी होना परमावश्यक है जिसे हम प्रायः भूल गए हैं / आज सड़क पर जिस पर होकर हम यात्रा करते हैं लिखा होता है "सावधानी हटी और दुर्घटना घटी" "जरा रुककर चलिए, आगे पुल है" "धीरे चलिए, सुरक्षित पहुँचिए' आदि-आदि अनेक बोर्ड लगे होते हैं। क्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यों लिखा होता है ? क्या हम आँख बन्दकर अपनी यात्रा तय करने लगे हैं ? नहीं, हमने अपनी यात्रा में ईर्यासमिति को छोड दिया है जिससे न केवल हम स्वयं अपित यात्रा करने वाला प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी यात्रा से भयभीत हो गया है। पता नहीं कब टकरा जाएँ और की गयी सारी की सारी यात्रा निष्फल हो जाए / हम चाहें पैदल चलें या वायुयान से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता किन्तु हम जब भी यात्रा करें, हम विवेकशील होकर, संयत होकर यात्रा करें। हमारी यात्रा का मूलोद्देश्य दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों त्रिवेणियों का संवर्धन निहित हो जो ईर्यासमिति के चारों आलम्बनों के प्रयोग पर सम्भव है / तभी हमारी यात्रा सार्थक सिद्ध हो सकेगी। सन्दर्भ ग्रन्थ : 1. (क) जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप-देवेन्द्रमुनि शास्त्री। (ख) मरुधर केसरी अभिनन्दन ग्रन्थ / 2. निशीथ भाष्य सूत्र / 3. भगवती सूत्र। 4. उत्तराध्ययन। 5. दशवकालिक / 6. कल्पसूत्र / 7. आवश्यक हारिभदीयावृत्ति / 8. स्थानांग। 9. राजवात्तिक / 10. नियमसार। 11. प्रवचनसार / 12. तत्त्वार्थसूत्र / 13. द्रव्यसग्रह। 14. समयसार। 15. मूलाचार। 16. सर्वार्थसिद्धि / ईर्यासमिति और पद-यात्रा : डॉ० संजीव प्रचण्डिया 'सोमेन्द्र' | 231

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