Book Title: Irya evam Bhasha Samiti
Author(s): Trilokchand Jain
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 1
________________ ईर्या एवं भाषा समिति श्री त्रिलोकचन्द जैन श्रमणाचार में पाँच समितियों एवं तीन गुप्तियों का विशेष महत्त्व है। असंयम से निवृत्ति हेतु गुप्ति एवं संयम में प्रवृत्ति हेतु समिति का पालन आवश्यक है । प्रस्तुत आलेख में पाँच समितियों में से प्रथम दो ईर्या एवं भाषा समिति का आगमों के आधार पर सांगोपांग विवेचन करते हुए साधु-साध्वी के आचार से अवगत कराया गया है। ईर्या समिति जहाँ यतना से गमनागमन का विधान करती है वहाँ भाषा समिति विवेकपूर्वक वचन प्रयोग पर बल प्रदान करती है । - सम्पादक भारतीय संस्कृति को जीवन्त रखने में श्रमणों का आधारभूत स्थान रहा हुआ है। श्रमणों ने अध्यात् मार्ग को अपनाते हुए तन की अपेक्षा चेतन को स्वभाव में लाने पर बल दिया। अतीत का पारायण करने पर ज्ञात होता है कि श्रमणों ने संयम-साधना, तप आराधना के माध्यम से स्व-जीवन को पवित्र बनाया और सानिध्य प्राप्त करने वाले अज्ञों को भी विज्ञ बनाया और उनका जीवन भी साधना से महकाया । '10 जनवरी 2011 जिनवाणी 375 श्रमण जीवन अर्थात् पाप विरति जीवन है। श्रमण को बाह्य रूप से सावद्य (पाप) क्रियाओं से बचना तथा आभ्यन्तर रूप से क्रोध, मान, माया, लोभ की वृत्ति से हटना होता है। साधु को अध्यात्म जीवन के उत्कर्ष • हेतु निरन्तर गतिशीलता रखते हुए व्रत, नियम आदि के सम्यक् पालन और मर्यादा से अपने चारित्र को संवारना होता है। श्रमण-दीक्षा ग्रहण करते समय पाँच प्रतिज्ञाओं के रूप में पाँच महाव्रतों को ग्रहण करना और उन्हें जीवन पर्यन्त प्राणपण से पालना श्रमण का उत्कृष्ट कर्त्तव्य होता है। साथ ही 5 समिति 3 गुप्ति रूप अष्ट प्रवचन माता श्रमण के अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों की सुरक्षा एवं विशुद्धता के लिए माता के समान परिपालना देखभाल करती है । जिस प्रकार माता की भावना पुत्र को सन्मार्ग पर चलाने की होती है तथा वह पुत्र के संरक्षण और विकास के लिए सतत प्रयासरत रहती है उसी प्रकार श्रमण के लिए 5 समिति और 3 गुप्तियों को उत्तराध्ययन सूत्र में प्रवचन माता के विरुद से अभिहित किया गया है। Jain Educationa International अपवयण मायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचे य समिईओ, ओ गुत्तीओ आहिया || - उत्तराध्ययन सूत्र 24.1 अर्थात् समिति और गुप्ति मिलकर आठ प्रवचन माताएँ हैं। समितियाँ पाँच और गुप्तियाँ तीन हैं। श्रमण धर्म निवृत्ति परक है, लेकिन संयम-जीवन के संचालन हेतु नित्य आवश्यक कर्मों में प्रवृत्ति का For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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