Book Title: Hirsundaramahakavyam Part 2
Author(s): Devvimal Gani, Ratnakirtivijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 7
________________ भाग पाछळथी लखायो होय ते शक्य छ । हील०मां श्लोको तथा तेमनो क्रम हीमु० जेवा ज छ । पण आमां हीसुं०ना क्रमे ज हीलनी टीका गोठवी छे । तेनो क्रमनिर्देश टिप्पणी रूपे नीचे कर्यो छे । अने श्लोकोनो पाठ पण हीसुं०नो ज मूळमां राख्यो छे । पाठान्तर टिप्पणीमां आप्यो छे अने ते श्लोकनी बाजुमां ★ नुं निशान कर्यु छे तेथी ते श्लोको हील०मां हीमु० जेवा ज समझवाना छे, तेनी शरुआतमां नोंध पण मूकी छे । हीसुं०मां जे श्लोको नथी अथवा व्युत्क्रमे छे तेनी एक तालिका आपवानो पहेला भागनी प्रस्तावनामां निर्देश को हतो ते प्रमाणे ते तालिका परिशिष्ट रूपे मूकी छे । परिशिष्ट-२मां, टीकामां आवतां, अवतरणो आप्यां छे । तेनां शक्य मूळ स्थानो शोधीने मेळववा प्रयत्न कर्यो छे । पहेला भागनी जेम आमां श्लोक के टीका पूर्वे हीसुं० के हील. एवी संज्ञा करी नथी । मात्र टीकाना टाइपो बदल्या छे जेथी ख्याल आवी जाय छे । प्रांते, पूज्य गुरुभगवंते मारा पर विश्वास मूकीने आ कार्य मने सोंप्यु; तेमना ए विश्वासमां हुं केटलो खरो ऊतर्यो छु ए तो तेओश्रीज कही शके, पण तेओश्रीए अखूट धीरज राखीने मारा आळस अने विलंबने सह्या छे अने आ डगलुं मांडवामां छेक सुधी आंगळी झाली ज राखी छे - ए एमनो महमूलो उपकार छ । आगळ भविष्यमां आवां कार्योमां एमना विश्वासने सवायो करी देखाडवानां बळ माटेनी कृपा पण एमनी पासे ज याचीने विर{ छ । ' मुनिरत्नकीर्तिविजय भगवाननगरनो टेकरो, अमदावाद भादरवा सुदि-११, वि.सं. २०६१ संज्ञा हीसुं० - हीरसुन्दर हील० - हीरसौभाग्यलघुवृत्ति हीमु० - हीरसौभाग्यमुद्रित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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