Book Title: Hirsundaramahakavyam Part 2
Author(s): Devvimal Gani, Ratnakirtivijay
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 11
________________ 10 - हीसुं० के हीसौ०नी आम तो अढळक विशेषताओ अने लाक्षणिकताओ छे. अने ए बधी विशेषताओनो ताग मेळववा माटे आ काव्यनो अनेक दृष्टिए अभ्यास थवो अत्यन्त जरूरी छे. आ काव्यमां धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, भाषाशास्त्रीय, तुलनात्मक, अलंकारिक, साहित्यिक-एम अनेक प्रकारे अध्ययन करवाजोगी सामग्री मळी शके ज. आम छतां, प्रथम नजरे आंखे ऊडीने वळगती बे विशेषताओ ते आ : (१) आमां कर्ताए टांकेलां अनेक ग्रन्थोनां अढळक उदाहरणो-अवतरणो. . (२) आमां मळता देश्य तेमज कर्त्ताना समकालीन व्यवहारोपयोगी भाषाकीय शब्दप्रयोगो. थोडं फुटकळ काम आ दिशामां थयुं छे खलं. पण नक्कर काम हजी सन्निष्ठ-रसिक अभ्यासीनी प्रतीक्षामां ऊभुं ज छे. हीसुं० ना द्वितीय भागमां आवा शब्दो तथा उदाहरणोनी एक नोंध मूकवानी धारणा छे, ए आशाए के कोई अभ्यासी तेनो उपयोग करी शके. प्रस्तुत प्रकाशन/संपादन परत्वे. ... संवत् २०४८मां ऊनाक्षेत्रनी स्पर्शना थई, त्यारे जगद्गुरुनी अंतिम भूमि रूप "शाहबाग"नी पण यात्रानो योग बन्यो. जगद्गुरुना स्पृहणीय जीवन-कार्य प्रत्येनो अहोभाव ते पळे प्रबळपणे अभिव्यक्त थतो अनुभवायो. तेओश्रीनी जीर्ण थएल समाधिनो पुनरुद्धार २०५२ सुधीमा कराववो - एवो एक संकल्प पण सहजभावे मनमा जाग्यो. सं. २०५०मां जगद्गुरुनी जन्मभूमिना क्षेत्र ‘पालनपुर'मां चातुर्मासनो योग बन्यो. अपरिचित क्षेत्र, पण एकमात्र आकर्षण ए के त्यां हजी जगद्गुरुनु जन्मस्थान गणातुं मकान उपाश्रयरूपे मोजूद छे. चोमासामां पण आ सिवाय कोई ज बाबत एवी न मळी के जे त्यां अजाण्याने जवा के रहेवा, आकर्षण बनी शके. पण ए चोमासामां जगद्गुरुना जन्मस्थान ‘नाथीबाईना उपाश्रय'ना नित्यदर्शननो सरस लाभ थयो, ए ज महत्त्व- गणाय. हुं एम विचारुं छु के जेमना जन्मनुं तथा स्वर्गारोहणY - आ बन्ने स्थानो आजे पण मोजूद होय तेवा ऐतिहासिक पुरुष मात्र जगद्गुरु ज छे. . __पालनपुरना वर्षावासमां 'हीरसौभाग्य'- वांचन करवू आरंभ्युं. तो मुद्रित प्रतिमां आव्या करती क्षतिओ बहु खटकवा मांडी. शोधकवृत्तिनी प्रेरणाथी हीसौ०नी हस्तप्रतिओ मेळववा प्रयास कर्यो, तो हीसौ०नी बे त्रण ज प्रतिओ मळी, अने वधुमां हीसुं० तथा हील० नी कुल त्रणेक प्रतिओ सांपडी. ए बधी सामग्री तपासतां हीसुं० तथा हील०नी सामग्री हजी अप्रगट होवानुं जणातां तेनुं संपादन तथा प्रकाशन, चतुर्थ शताब्दीना अवसरने अनुलक्षीने, करवानो निश्चय कर्यो; अने मुनि श्रीरत्नकीर्तिविजयजीने ए काम भळाव्युं. तेमणे पण उल्लासभेर ए काम करवानुं स्वीकार्यु; अने तेमणे करेली दोढ वर्षनी महेनतनुं परिणाम आ ग्रंथरूपे आजे प्रगट थई रह्यु छे. आ संपादनमा प्रथम हीसुं० काव्यनो मूळपाठ, तेनी नीचे तेनी टिप्पणी, अने ते पछी हील० (हीरसौभाग्य परनी लघुवृत्ति)नो पाठ-आ क्रमे वाचना आपवामां आवी छे. हील० प्रतिमां पण मूळकाव्य पाठ छे ज; परंतु ते हीमु० (हीरसौभाग्य-मुद्रित)ने सर्वांशे मळतो ज पाठ छे, तेथी ते पाठ अत्रे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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