Book Title: Hirsundaramahakavyam Part 2 Author(s): Devvimal Gani, Ratnakirtivijay Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti View full book textPage 6
________________ 5 आमां एमना तप अने स्वाध्याय वगेरे आराधनाओनुं जे वर्णन छे, वाह ! वांचीने रोमांचित थइ जवाय, हैयुं अहोभावथी झुकी जाय - ए 'जागता जण'नां ओवारणां लेवानुं मन थाय, अने जात माटे शरम पण अनुभवाय के केवा भ्रममां राचीए छीए ! आ ए साधुता छे, जेने देवो शंखे छे अने नमन करे छे । एमनां जीवननो प्रधान सूर छे साधुता, आत्मजागृति, आत्मभान । एमनां जीवनमां पुण्यनो प्रकर्ष जेम जोवा मळे छे तेम मोह उपरना विजयनो प्रकर्ष - उत्कर्ष पण डगले ने पगले जोवा-अनुभववा मळे छे। अने ते ए ज छे जेने शास्त्रोमा महापुरुषो साची साधुता के आत्मजगृतिना नामे ओळखावे छे। मोह- जय विनानो एकलो पुण्यनो प्रकर्ष साधुता न गणाय, ए तो क्यारेक आत्मा माटे हानिकारक पण बनी शके । - T बे हजार साधुओना पोते नायक ! केवी अने केटली जवाबदारी हशे ? संघ शासन अने समाज प्रत्ये पण एटली ज जवाबदारी । प्रश्नो अने समस्याओ तो त्यांय आवतां ज हशे अने छतांय केवा हळवा फूल ! बधी ज जवाबदारीओ वच्चे पण केवुं ज्ञानमय, तपोमय जीवन ? केवी चित्तविशुद्धिआत्मविकासनी लगन ? आज छे एमनुं साचुं जीवन, आट आटली जवाबदारीमां पण हजारो उपवास, आयंबिल, नीवी; सेंकडो छठ, अठम कर्या । पोताना गुरुभगवंतो पासे प्रायश्चित लईने तेनी तपश्चर्याओ पण करी । अने आ बधा ज बाह्यतप उपरांत सौथी महत्त्वनी बात- स्वाध्याय - शास्त्रसर्जन ! एमणे एमनां जीवनमां चार करोडनो स्वाध्याय कर्यो हतो । 'चार करोड' बोलता तो मोढुं ज खुल्लुं रही जाय छे, कल्पनातीत छे । एमनां संयम जीवनना ५६ वर्षमां गणतरी मूको तो रोज - आजीवन २००० गाथानो स्वाध्याय करे त्यारे ५६ वर्षे ४ करोडनो स्वाध्याय थाय । स्वाध्याय एमना श्वास-प्राण साथे वणाई गयो होय एवं लागे । बळूकी आत्मजागृति के साधुतानी अदम्य खेवना विना आ निष्ठा ज्ञाननिष्ठा शक्य नथी । पूज्यगुरु भगवंत एक वात कायम करे छे के 'ज्ञान होवु एक वात छे अने ज्ञानदशा होवी ते बीजी वात छे' । जगद्गुरुनी आ निष्ठा एमनी ज्ञानदशानो पुरावो छे । आदर्श नायक केवा होय, आदर्श साधुजीवन केवुं होय तेनो आदर्श नमूनो छे जगद्गुरुनुं जीवन । साधुजीवननी मर्यादाओ, विधिनिषेधो गरिमा वगेरेनी वातो शास्त्रमां आवे छे तेनो जीवंत चितार छे जगद्गुरुनुं जीवन | अने एटले ज कहेवानुं मन थाय छे के मुमुक्षु के संयमीनां जीवनमां एनी मोक्षयात्रामां के चरित्र जीवननां रूडां पालनमां जगद्गुरुनुं चरित्र बहु ज उपकारक छे । साधु जीवननी - साधुतानी ए शिक्षापोथी छे । ए दृष्टिए एनो अभ्यास थवो जोइ । जगद्गुरुश्रीनी साधुताना अमृतकुंभनी एकाद छांट पण आ जीवनमां आवे एवा पुरुषार्थना आशिषनी देव-गुरु-धर्मनां चरणे प्रार्थना छे । आ कार्यमा डहेलानो उपाश्रय-अमदावाद, शेठ डॉ. अ. पेढीनो भंडार - भावनगर, श्री जैन आत्मानन्द सभा-भावनगर, श्रीहंसविजयजी शास्त्रसंग्रह - वडोदरा - आ बधा भंडारोनी प्रतिओनी झेरोक्ष नकलनो उपयोग कर्यो छे ते माटे ते ते भंडारोना कार्यवाहकोनो आ क्षणे आभार मानुं छं । हील० - लघुवृत्ति ११मा सर्गना ९मा श्लोक सुधी ज छे । पछी ते प्रतिमां श्लोक - टीका बधा ज पाठो हीसुं० जेवा ज छे । वळी त्यार पछीना पृष्ठोना अक्षरो पण बदलाय छे एटले ११ / ९ पछीनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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