Book Title: Hindu aur Jain Vrat Ek Kriya Pratikriyatmaka Lekha Jokha
Author(s): Anita Bothra
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ ११६ अनुसन्धान ५० (२) है। जैनों में यद्यपि मन्दिरमार्गियों में पूजा के पहले स्नान का प्रचलन है तथापि स्नान और बाह्यशुद्धि को अनन्यसाधारण महत्त्व नहीं दिया है। भावशुद्धि की प्रधानता बतायी गयी है क्योंकि सभी जैनआचार का केन्द्र ही भावशुद्धि है। हिन्दुओं में देवताप्रीत्यर्थ किये गये व्रतों में विशिष्ट धान्य तथा शाकभाजी से युक्त भोजन नैवेद्य स्वरूप में चढाया जाता है। जैन व्रतों में यह पद्धति प्रचलित नहीं है तथा प्रसाद भी बाटने की प्रथा प्रायः नहीं है। दोनों परम्पराओं में यद्यपि प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है तथापि गणपति, गौरी, हरतालिका, राम-रावण, दुर्गा आदि प्रासंगिक प्रतिमाओं का निर्माण, विसर्जन तथा दहन हिन्दु परम्परा में बहुत ही प्रचलित है । जैन परम्परा में प्रासङ्गिक प्रतिमानिर्माण तथा विसर्जन को बिलकुल ही स्थान नहीं है क्योंकि जैन दृष्टि से यह सब विराधना, आशातना, प्रमादचर्या तथा अनर्थदण्डरूप है । अपत्यप्राप्ति के लिए तथा पति के दीर्घायुष्य के लिए व्रत रखना, प्रायः सभी व्रतों में सुवासिनी स्त्री को महत्त्व देना-ये सब हिन्दुव्रतों की विशेषताएँ हैं । जैनव्रतों में इन्हें खास तौरपर परिलक्षित नहीं किया जाता क्योंकि अपत्य का होना या न होना, पति की आयुर्मर्यादा आदि सब बातें कर्माधीन हैं । व्रत रखकर आयुष्य बढाने में जैन सिद्धान्त विश्वास नहीं रखता। हिन्दु स्मृतिग्रन्थों में सभी 'प्रायश्चित्तों' को 'व्रत' कहा है। जैन परम्परा में 'प्रायश्चित्त' याने 'छेद' को 'तप' कहा है । प्रायश्चित्तों को केन्द्रस्थान में रखकर दोनों परम्परा में अलग से ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। हिन्दुओं में कुछ व्रतों के लिए पुरोहित की आवश्यकता बतायी है। विविध प्रकार के होम किये जाते हैं । कुछ व्रत दूसरों द्वारा करवाने का भी जिक्र किया गया है। जैन व्रतों में व्रत मुनि की आज्ञा से करते हैं। होम का प्रावधान बिलकुल ही नहीं है और व्रत खुद

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