Book Title: Hindi Marugurjar Sajain Sahitya ka Mahattva aur Mulya
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf
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________________ हिन्दी ( मरु-गुर्जर) जैन साहित्य का महत्व और मूल्य उपरोक्त दष्टियों से विचार करने पर यह साहित्य अत्यन्त मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण है, किन्तु इसका वास्तविक मूल्यांकन अभी तक नहीं हो सका है। जिसके कारण न केवल मरु-गुर्जर जैन साहित्य पूर्णतया प्रकाश में नहीं आ पाया, अपितु हिन्दी भाषा और साहित्य के अनेक महत्त्वपूर्ण पक्ष भी अंधेरे में रह गये हैं। उनके सम्बन्ध में जो अटकल-पच्चू अनुमान किए गये हैं, वे एक के बाद एक अप्रामाणिक सिद्ध होते जा रहे हैं। अतः आवश्यकता है कि हम अपनी भूल का परिमार्जन करें और लगन तथा ईमानदारी से इस विशाल एवं प्रामाणिक साहित्य के विविध पक्षों का विस्तत एवं वैज्ञानिक अध्ययन करें। सन्दर्भ-ग्रन्थ - 2. लं 4. 5. 6. George Grierson, Linguistic Survey of India, Vol. I, p. 170 Dr. Suniti 'Chatterjee Origin and Development of Bengali Language', p. 9. श्री मो.द. देसाई 'मरुगुर्जर कविओ', भाग 1, पृ. 14 आ. गुलेरी 'पुरानी हिन्दी', पृ. 76 अगरचन्द नाहटा, राजस्थानी साहित्य का आदिकाल ( परम्परा विशेषांक), पृ. 167 There is enormous mass of Literature in various froms in Rajasthani of considerable historical importance. G.A. Grierson, Linguistic Survey of India, p.10. * 3, महामनापुरी, आई.टी.आई. रोड, बी.एच.यू., वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org