Book Title: Hindi Marugurjar Sajain Sahitya ka Mahattva aur Mulya
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 10
________________ सगुण का भेद नहीं है, जैसा हिन्दी भक्ति साहित्य में है बल्कि इनमें समन्वय मिलता है। वे आत्मा और परमात्मा को एक स्वीकार करते हैं अप्पा सो परमप्पा इनका ब्रह्म निर्गुण और सगुण से पर शुद्ध प्रेमस्वरूप है। वह । साहित्य सच्चे अर्थ में सत् साहित्य का अनुवर्ती है रहस्यवाद, गुरु को भगवान मानना, बाह्याडम्बर का विरोध, चित्तशुद्धि, संसार की असारता और आत्मा परमात्मा के प्रति प्रिय-प्रेमीस्प में विश्वास इस साहित्य से ही संत साहित्य तक पहुँचा है। अतः इसके अध्ययन द्वारा हिन्दी का संत साहित्य ज्यादा सुविधापूर्वक समझा जा सकता है । इन लोगों ने शान्तरस प्रधान धार्मिक साहित्य द्वारा वस्तुतः साहित्य को ही उसके उच्चतम आसन पर प्रतिष्ठित किया है और उसके माध्यम से मानव को सहिष्णुता, संयम एवं आदर्श का सच्चा मार्ग दिखाया है। जैन भक्त कवियों में आनंदघन भैया भगवतीदास, बनारसीदास आदि अनेक उच्चकोटि के कवि हो गये हैं। आगे चलकर जैनधर्म में तीर्थंकरो यक्ष-यक्षी के रूप में विभिन्न देवी-देवताओं का प्रवेश हिन्दू भक्ति परम्परा का प्रभाव हो सकता है। देवी-देवताओं के प्रति भक्ति और उनसे अपने दुःखों से मुक्ति की प्रार्थना भी भागवत परम्परा का ही प्रभाव है। इस प्रकार के स्तोत्र और स्तवन भी बड़ी संख्या में मरु-गुर्जर जैन साहित्य में उपलब्ध हैं, परन्तु थे निश्चय ही परवर्ती हैं। प्रारम्भिक जैन स्तोत्र साहित्य में ऐसे भाव नहीं मिलते। स्तोत्र स्तवन की परम्परा जैन साहित्य में काफी पुरानी है क्योंकि जैनदर्शन के षडावश्यकों में इसे दूसरा आवश्यक कहा गया है। यह भक्ति किसी उद्धारकर्ता के भरोसे बैठकर आलस्य की अनुमति नहीं देती बल्कि स्वयं अपनी मुक्ति के लिए साधक को संयम और कठोर साधना की प्रेरणा देती है । इस भक्ति में वस्तुतः ज्ञान और कर्म का सच्चा समन्वय है। समस्त जैनशास्त्र चार अनुयोगों में विभक्त है (1) प्रथमानुयोग, (2) करणानुयोग (विश्व का भौगोलिक वर्णन ), (3) धरणानुयोग (साधुओं और भावकों का अनुशासन और (4) द्रव्यानुयोग (तत्वज्ञान) इनमें से । प्रथमानुयोग का सम्बन्ध साहित्य से है। समस्त धार्मिक कथा साहित्य प्रथमानुयोग के अन्तर्गत गिना जाता है। जैन साहित्य में प्राप्त महापुराण, पुराण, चरितकाव्य, रूपककाव्य, कथाकाव्य, सन्धिकाव्य, रासो, स्तोत्र - स्तवन आदि विविध रूप प्रथमानुयोग के अन्तर्गत आते हैं पुराण शब्द प्राचीन कथा का सूचक है। पुराण में एक ही महापुरुष । का जीवन अंकित होता है, जबकि महापुराण में अनेक महापुरुषों का जीवन अंकित होता है महापुराण में 24 तीर्थकर 12 चक्रवर्ती 9 वासुदेव 9 प्रतिवासुदेव और 9 बलदेव कुल 63 महापुरुषों (त्रिशष्टिशलाका पुरुषों) का वर्णन होता है। जैन पुराणों में रामायण और महाभारत के पात्रों तथा घटनाओं का वर्णन भी जैन धर्मानुसार किया जाता है। प्रायः चरित काव्यों में आश्चर्य तत्त्व, चमत्कार, विद्याधर, गन्धर्व, यक्ष, देव आि का समावेश मिलता है। तंत्र-मंत्र, स्वप्न- शकुन आदि का भी प्रभाव दिखाया जाता भाँति इनमें चमत्कार द्वारा पाठक को उपदेश दिया जाता है। इनके में समर्थ और नाना चमत्कारी विद्याओं में पारंगत होते हैं। अतिमानवीय पात्रों को आदर्श या माध्यम बनाकर सामान्य । ★ है । कथानक रूढि आवश्यकतानुसार त्याग और ग्रह भी आवश्यकतानुसार प्राचीन यह पूर्व तथा उत्तर के स कथानक रूढ़ियों का मह-गुर्जर जैन बनना Jain Education International हिन्दी (मरु-गुर्जर) जैन साहित्य का महत्त्व और मूल्य SPA For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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