Book Title: Hindi Bhakti Sahitya me Guru ka Swarup aur Mahattva
Author(s): Kishorilal Raigar
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 8
________________ 96 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 अनहद की धुनि करे बिचारा। ब्रह्म दृष्टि होय उजियारा| एह जो कोह गुरु ज्ञानी बूझे। सब्द आनहद आपुहि सूझे।। (दरिया) संतमत में परम पुरुष तक पहुँचने का अन्तर्मुखी रूहानी अभ्यास सद्गुरु ही सिखाता है, जिसको गुरुमंत्र, नाम-दान या गुरु का शब्द कहा जाता है। सूफी संत इसे 'कलमे का भेद' दिया जाना मानते हैं। वास्तव में रूहानी अभ्यास से गुरु का शब्द ही साक्षात् गुरु के रूप में प्रकट हो जाता है। सद्गुरु के दिए गए नाम में बड़ी शक्ति होती है। इसे महाराज सावन सिंह ने इस प्रकार समझाया है - सतगुरु का बख्शा सिमरन केवल लफ्ज ही नहीं होता। इसमें सतगुरु की शक्ति और दया शामिल होती है, जिस कारण यह सिमरन शीघ्र फलदायक होता है। इस सिमरन के द्वारा मन सहज ही अन्दर एकाग्र हो जाता है। सतगुरु द्वारा बख्शा गया सिमरन बन्दूक में से निकली गोली के समान प्रभाव डालता है, जबकि मन-मर्जी से किया गया सिमरन हाथ से फेंकी गई गोली के समान व्यर्थ चला जाता है। (संतमत सिद्धांतः महाराज सावन सिंह जी, राधास्वामी सत्संग, ब्यास, पृ 145) कहने का तात्पर्य यह है कि सतगुरु साक्षात् परम पुरुष के रूप में होते हैं, जो शिष्य को नामदान देकर उसकी रूहानी यात्रा में मार्गदर्शन करते हैं। ऐसे शिष्य का ही परदा खुलता है तथा फिर उसकी आवागमन से मुक्ति हो जाती है। नानक सतिगुरु भेटिए, पूरी होवे जुगति। हसंदिआखेळंदिया पैनंदिया खावंदिया विचे होवै मुकति।। (नानकदेव) सतगुरु शब्द के रूप में शिष्य को ऐसी अमृत जड़ी का पान करवाता है, जिसे पीकर शिष्य संसार सागर से पार उतर जाता है। सतगुरु के शब्द से काल भी डरता है। इस बात को संत कबीर ने और भी स्पष्ट करते हुए कहा है "गुरु ने मोहिं दीन्ही अजब जड़ी। सोजड़ी मोहिंप्यारी लगतु है, अमृत रसन भरी। (कबीर) इसी तरह उन्होंने और भी कहा है - सतगुरु एक जगत में गुरु हैं, सो भव से कडिहारा। कहे कबीर जगत के गुरुवा, मरि-मरि लें औतारा।। (कबीर) कबीर, रविदास व अन्य निर्गुण संतों ने अपने देहधारी गुरु को परमात्मा के रूप में माना है। इनके पदों में स्थान-स्थान पर अपने गुरु की प्रशंसा में अमोलक वचन कहे गये हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि भक्ति में गुरु का पद सबसे बड़ा है। सगुण भक्ति में भी सतगुरु को विशेष महत्त्व दिया गया है। मीरा, संत रविदास को अपना गुरु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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